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Exclusive Articles written by Ajay Setia

काबुल में अपन ही क्यों 'आतंकियों' का निशाना

Publsihed: 08.Oct.2009, 21:27

अफगानिस्तान की राजधानी काबुल। काबुल में अपना दूतावास फिर बना आतंकियों का निशाना। आईएसआई का हाथ बताना अभी जल्दबाजी होगा। वरना पाकिस्तान फिर कहेगा- 'जांच से पहले पाक पर तोहमत की अपनी आदत।' पर काबुल में कोई और भारतीय दूतावास को निशाना बनाएगा ही क्यों। अपन तो 42 देशों की नाटो फोर्स में भी शामिल नहीं। जो अफगानिस्तान में तालिबान से लड़ रहीं। अपना रोल तो सिर्फ अफगानिस्तान के नव निर्माण का। सड़कों का निर्माण। अस्पतालों-स्कूलों-इमारतों का निर्माण। अपन आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई से सीधे नहीं जुडे। सीधा जुड़ा है पाकिस्तान। फिर बार-बार भारतीय दूतावास पर हमले क्यों। समझना मुश्किल नहीं। अफगानिस्तान में अपनी मौजूदगी से जली-भुनी बैठी है आईएसआई।

पाकिस्तान को लेकर उलझन में अपने मंत्री

Publsihed: 08.Oct.2009, 10:23

लोक दिखावे और असलियत का फर्क अब दिखने लगा। सताईस सितंबर को एसएम कृष्णा और कुरैशी की मुलाकात हुई। तो अपन को खबर दी गई- 'सख्त कार्रवाई के बिना बात नहीं।' पर कुरैशी ने बुधवार को इस्लामाबाद में कहा- 'सकारात्मक रुख दिखाई दिया।' अपन को पहले से ही आशंका थी। महाराष्ट्र का चुनाव हो जाने दीजिए। मनमोहन की याद धुंधली हो जाएगी। मुंबई का हमला महत्वहीन तो नहीं होगा। पर पाक से बातचीत में अड़चन भी नहीं होगा। अपन ने 23 सितंबर को लिखा था- 'महाराष्ट्र चुनाव के बाद मिलेंगे मनमोहन-गिलानी।' सो अब नवंबर के तीसरे हफ्ते की मुलाकात तय।

कामनवेल्थ फैडरेशन पहुंची तो पीएम के होश हुए फाख्ता

Publsihed: 07.Oct.2009, 10:18

जिनने 1984 का चुनाव नहीं देखा। उनने चुनावों में सांपों-बिच्छुओं का इस्तेमाल नहीं देखा। अपन यहां लाहौर की कहावत का इस्तेमाल मुनासिब नहीं समझते। पर लाहौर की कहावत बताना वक्त की जरूरत। वहां एक कहावत है- 'जिन्ने लाहौर नहीं वेख्या, ओ जाम्या ही नहीं।' यानी जिसने लाहौर नहीं देखा, वह पैदा ही नहीं हुआ। आजादी के बाद दूर दराज के कस्बों-गांवों में जितना मोह दिल्ली देखने का। उतना आजादी से पहले लाहौर देखने का था। कम से कम उत्तर भारत में तो था ही। पर अपन बात कर रहे थे चुनाव की। महाराष्ट्र के चुनावों में चूहों-बिल्लियों-सांपों-मेढकों का इस्तेमाल हुआ। तो अपन को 1984 के चुनाव याद आए। जब कांग्रेस ने इश्तिहारों में अपने विरोधियों को कहीं बिच्छू। तो कहीं सांप दिखाया था। अब महाराष्ट्र के चुनाव में वही आलम।

मंदी में थरूर का नया टि्वटर मंत्र

Publsihed: 03.Oct.2009, 09:57

गांधी जयंती पर यों तो खबरों का अकाल सा था। सिवा दो खबरों के। एक तो कर्नाटक-आंध्र में बाढ़ की। दूसरी बिहार में नक्सली हिंसा पर लालू के राजनीतिक तीरों की। पर दिन गांधी जयंती का था। सो अपन गांधी की ही बात करें। तो सरकार को भी गांधी की याद आ ही गई। ग्रामीण रोजगार योजना अब गांधी के नाम होगी। वरना तो गांधी के नाम पर इंदिरा, राजीव, सोनिया, प्रियंका और राहुल ही थे। अपन पक्के तौर पर तो नहीं कह सकते। पर कनाट प्लेस का नाम महात्मा गांधी के नाम पर होता। तो शायद चल निकलता। वैसे भी देशभर के हर कस्बे में एक गांधी मैदान। एक गांधी चौक। पर दिल्ली में गांधी के नाम पर एक गांधी समाधि। दूसरा पूर्वी दिल्ली का गांधी नगर।

नेहरू-पटेल पर मोदी सोनिया में कहा-सुनी

Publsihed: 02.Oct.2009, 13:48

दिनशा पटेल अपनी जिद्द पर अड़े न रह सके। सरदार पटेल मेमोरियल ट्रस्ट के फंक्शन में मोदी को बुलाना पड़ा। मोदी पहुंचे। तो फिर वही हुआ। जिसका दिनशा पटेल को अंदेशा था। यों मोदी न बुलाए जाते। तो कोई सोनिया को जवाब देने वाला न होता। यों फंक्शन तो ट्रस्ट का था। पर दिनशा पटेल चाहते थे- कांग्रेस का मुशायरा हो जाए। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील को बुलाया। गवर्नर एससी जमीर को बुलाया। पर बात सीएम की चली। तो बोले- 'यह तो प्राइवेट फंक्शन, सरकारी नहीं।' पर ना-ना करते न्योता दिया। तो कार्ड में सीएम का नाम नहीं छापा। चाहते थे सीएम का भाषण ही न हो। पर सोनिया गांधी का भाषण लिखा कर ले गए।

किसी के पास बेटी है तो किसी के पास मां

Publsihed: 01.Oct.2009, 13:38

कलावती के घर रात बिताना आसान। पर जेएनयू में एक घंटा बिताना भी मुश्किल होगा। राहुल गांधी ने ऐसा सोचा नहीं था। जेएनयू के नौजवानों ने राहुल के छक्के छुड़ा दिए। पहले तो अंदर घुसते ही काले झंडों का सामना हुआ। पर तनाव में नहीं आए राहुल। पर जब सवालों का सिलसिला शुरू हुआ। तो पसीने छूट गए। सवाल हुआ- 'कार्पोरेट घरानों को सब्सिडी। पर हायर एजुकेशन के लिए पैसा नहीं?' राहुल को जवाब नहीं सूझा। वह बोले- 'लगता है आप वामपंथी विचारधारा को मानते हैं।' यह सच भी। जेएनयू पर शुरू से ही वामपंथियों का कब्जा। प्रकाश करात से लेकर सीताराम येचुरी तक जेएनयू की देन। पर बात राहुल के फंसने की। इस सवाल ने तो राहुल के बारह बजा दिए।

भ्रष्टाचार में सिर्फ बाबू धरे जाएंगे, कोई क्वात्रोची नहीं

Publsihed: 29.Sep.2009, 21:26

संसद में घोटाला कबूल हो चुका। कबूल हो चुका- बोफोर्स तोपों की खरीद में दलाली हुई थी। पर कांग्रेस शुरू से पर्दा डाल रही थी। यही करना था एक दिन। यूपीए की पिछली सरकार ने क्वात्रोची की मदद की। क्वात्रोची के सील खाते खुलवाना शुरूआत थी। लेफ्ट की मदद से किया यह कांग्रेस ने। अब दूसरी बार सरकार बनी। तो बैसाखियां लेफ्ट से भी ज्यादा लाचार। सो सरकार ने तय कर लिया- 'क्वात्रोची के खिलाफ मुकदमे हटा लिए जाएं।' मंगलवार को कोर्ट में बता दिया। तीन अक्टूबर को मुकदमे हटा लेंगे। यह होना ही था। दलाली का आरोप विपक्ष का नहीं था। भारतीय मीडिया का भी नहीं।

तो नेता पुत्रों ने बाजी मार ली दस जनपथ पर

Publsihed: 26.Sep.2009, 09:36

तो वही हुआ। जिसका सभी को अंदेशा था। सोनिया गांधी नेता पुत्रों के आगे झुक गई। वाईएसआर के बेटे जगनमोहन पर कड़ा रुख अपनाया। तो अपन को लगता था- एसेंबली चुनावों में भी नेता पुत्रों की शामत आएगी।  सोनिया के करीबी बता रहे थे- आंध्र से सबक लिया है आलाकमान ने। अब नेता पुत्रों को टिकट देने से पहले दस बार सोचेंगे। दस जनपथ से छन-छनकर खबरें छपती रही- 'हरियाणा-महाराष्ट्र में नेता पुत्रों को टिकट नहीं दिया जाएगा।' हरियाणा में तो सोनिया की घुड़की काफी हद तक काम की। पर महाराष्ट्र में नेताओं की घुड़की ज्यादा काम कर गई।

एटमी पनडुब्बी तैयार अग्नि-5 की भी तैयारी

Publsihed: 25.Sep.2009, 00:03
माना अपनी सैन्य तैयारियां पूरी नहीं। अपने सैनिकों की हिम्मत में कोई कमी नहीं। पर अपने सैनिक घुड़सवार तो नहीं। जो तलवार भांजते हुए दुश्मनों की छाती पर चढ़ दौड़ेंगे। इक्कसवीं सदी की जंग जहां आधुनिक हथियार मांगेगी। वहां अब कूटनीतिक जंग भी अहम हो चुकी। पहले बात हथियारों की। अपन एयर फोर्स और नेवी प्रमुखों से सहमत। हथियारों की तैयारियां चीन के बराबर नहीं। अपने हथियार सत्तर और अस्सी दशक के। पुराने हथियारों को बदलने की सख्त जरूरत। जरा गौर करिए। चीनी बार्डर पर तैनात हथियार 1974 की खरीद। हथियारों की मारक क्षमता सिर्फ पांच हजार फुट। जमीन से जमीन मारक क्षमता वाले हथियारों की बात करें। अपन ने पहली खरीद अस्सी के दशक में की। दूसरी नब्बे के दशक में। अग्रिम मार वाली तोपों की बात। तो अपन ने आखिरी खरीददारी 1995 में की। पहले बोफोर्स तोप घोटाले ने खरीददारी पर ब्रेक लगाई। फिर कारगिल के दौरान हुई छोटी-मोटी खरीद ने। दलाली की आरोपबाजी से नुकसान हुआ सैन्य तैयारी का। कई बार तोपों की खरीददारी करने का मामला उठा। पर बात कभी आखिर तक नहीं पहुंची। एक बार अपना इरादा होवित्जर तोपें खरीदने का था। होवित्जर विमान से कहीं भी उतारी जा सकती हैं। पर मंसूबे ही बनते रह गए।  डिफेंस मिनिस्टर डरते ही रह गए। दूसरी तरफ बात चीन की। हथियारों की बात तो छोड़ दीजिए। बार्डर तक इंफ्रास्ट्रक्चर भी मजबूत। लद्दाख सेक्टर में कराकोरम के पार की बात। चीन की कंस्ट्रक्शन गतिविधियां चौंकाने वाली। अपनी सारी गतिविधियों पर नजर रखने में सक्षम हो चुका चीन। इसी महीने पीएलए की हरकतों ने अपन को चौंकाया। ऐसा नहीं कि अपन फिक्रमंद नहीं। फिक्रमंद न होते। तो अपने वायु और नौसेनाध्यक्ष ऐसे नहीं बोलते। फिक्रमंद न होते। तो एमके नारायणन टॉप लेवल की मीटिंग क्यों बुलाते। यह अलग बात। जो मीटिग की खबर लीक हुई। तो सत्रह सितंबर की मीटिंग टल गई। पर मीटिंग टल जाए। तो यह न मानिए- अपन फिक्रमंद नहीं। अपनी तैयारियां अब दो तरफा होंगी। जिसका जिक्र अपन ने शुरू में किया। हथियारों की खरीद से भी। कूटनीतिक मोर्चेबंदी से भी। पहले बात वाजपेयी के जमाने की। वाजपेयी के वक्त एक थ्योरी चली थी- 'भारत-चीन-रूस गठबंधन की।' इस गठबंधन के लिए दो मीटिंगें भी हुई। पर मनमोहन सरकार बनते ही रणनीति बदल गई। अब अपन अमेरिका के ज्यादा करीब। सो चीन अपन से बेहद खफा। इसकी झलक अरुणाचल और लद्दाख बार्डर पर दिखी। सो अब बात अपनी दोतरफा तैयारी की। तो मनमोहन सरकार भले ही लापरवाह दिखे। पर ऐसा है नहीं। पहले बात नेवी की। अपन को विदेशी मामलों के अंदरूनी जानकार ने बताया- 'यों तो अपनी एटमी पनडुब्बी अरिहंत की तैयारी भी जोरों पर। पर रूसी एटमी पनडुब्बी भारत आने को तैयार।' अपन ने दस साल की लीज पर ली है पनडुब्बी। अपन ने लीज के 650 मिलियन डालर अदा किए। बुधवार को रूस ने ऐलान किया-'पनडुब्बी के ट्रायल का तीसरा चरण पूरा हो चुका। मार्च-अप्रेल तक भारत के सुपुर्द कर दी जाएगी।' बात अग्नि-5 मिसाइल की। तो उसकी तैयारियां भी पूरी। आप पूछोगे- अग्नि-4 कब तैयार हुई। तो बता दें- अग्नि-4 नहीं होगी। वह अग्नि-3 की ही एडवांस स्टेज। याद है अपन ने 2006 से 2008 तक अग्नि-3 के तीन टेस्ट किए। तो अब छह हजार किलोमीटर मारक क्षमता वाली अग्नि-5 की तैयारी। अग्नि-5 आते ही अपना पलड़ा भारी होगा। बात इंफ्रास्ट्रक्चर की। तो अपन लद्दाख से अरुणाचल तक पांच एयरफोर्स लेंडिंग ग्राउंड तैयार कर चुके। पर बात सिर्फ सैन्य तैयारी की नहीं। बात कूटनीतिक जंग की भी। सो चीन भी यों ही सफाई देता नहीं घूम रहा। पता है चीन को भी- अमेरिका-जापान-रूस इस वक्त भारत के साथ। अपन कूटनीतिज्ञों की मानें। तो अग्नि-5 पर इस बार चिल्ल-पौं नहीं करेगा अमेरिका। अमेरिका भी तो चाहता है चीन के मुकाबले खड़ा हो भारत।

माना अपनी सैन्य तैयारियां पूरी नहीं। अपने सैनिकों की हिम्मत में कोई कमी नहीं। पर अपने सैनिक घुड़सवार तो नहीं। जो तलवार भांजते हुए दुश्मनों की छाती पर चढ़ दौड़ेंगे। इक्कसवीं सदी की जंग जहां आधुनिक हथियार मांगेगी। वहां अब कूटनीतिक जंग भी अहम हो चुकी। पहले बात हथियारों की। अपन एयर फोर्स और नेवी प्रमुखों से सहमत। हथियारों की तैयारियां चीन के बराबर नहीं। अपने हथियार सत्तर और अस्सी दशक के। पुराने हथियारों को बदलने की सख्त जरूरत। जरा गौर करिए। चीनी बार्डर पर तैनात हथियार 1974 की खरीद। हथियारों की मारक क्षमता सिर्फ पांच हजार फुट। जमीन से जमीन मारक क्षमता वाले हथियारों की बात करें। अपन ने पहली खरीद अस्सी के दशक में की। दूसरी नब्बे के दशक में। अग्रिम मार वाली तोपों की बात। तो अपन ने आखिरी खरीददारी 1995 में की। पहले बोफोर्स तोप घोटाले ने खरीददारी पर ब्रेक लगाई।

परिवारवाद का जलवा कहीं पूरा, तो कहीं अधूरा

Publsihed: 24.Sep.2009, 10:01
'टिवटर' के बाद आज 'फेस बुक' की बात। रेखा का भांजा है नवीद अजमन। अपन फिल्मी हिरोइन रेखा की बात कर रहे। मौसी टॉप हिरोइन हो। तो भांजे को उम्मीद होगी ही। जब नेताओं के बेटों-बेटियों को टिकट की उम्मीद। तो नवीद अजमन की उम्मीद फिल्म में रोल था। जब आमिर खान ने अपने भांजे इमरान को फिल्म दिला दी। तो नवीद अजमन की उम्मीद भी जायज। आखिर वह तो आमिर से बड़ी स्टार का भांजा। सो केलिफोर्निया से बड़ी हसरतें पालकर मुंबई पहुंचा था। सालभर मुंबई की खाक छानता रहा। पर रेखा ने धेले की मदद नहीं की। बड़े रुआंसे होकर केलिफोर्निया लौट गए। जाने से पहले अपनी फेसबुक पर लिखा- 'मुंबई का भूत उतर चुका। यहां परिवार की बैक न हो। तो किसी को हुनर दिखाने का मौका नहीं मिलता। सो मैं वापस लौट रहा हूं। कहीं ड्राइवर लग जाऊंगा। या किसी फाइनेंस फर्म में काम कर लूंगा।' पर आपने कभी ऐसा सुना- किसी नेता ने बेटे को छोड़ किसी और के लिए टिकट मांगा। सोचो, नवीद अजमन किसी नेता का भांजा होता। तो महाराष्ट्र या हरियाणा से टिकट ही ले मरता। सोनिया ने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील के बेटे राजेंद्र शेखावत को टिकट दे ही दिया। अमरावती से चुनाव लड़ेंगे शेखावत। यहीं से 1995 में देवी सिंह शेखावत चुनाव लड़े थे। तो प्रतिभा ताई पाटील सांसद थीं। पर पति देवी सिंह शेखावत सिर्फ चुनाव नहीं हारे। बीजेपी उम्मीदवार से जमानत जब्त हुई। सो उसके बाद कभी टिकट मांगने की हिम्मत नहीं हुई। जगदीश गुप्ता ने हराया था देवीसिंह शेखावत को। पर उसी जगदीश गुप्ता को अगली बार डा. सुनील देशमुख ने हराया। एक नहीं अलबत्ता दो बार हरा चुके। अभी अशोक चव्हाण की केबिनेट में मंत्री भी। पर सोनिया ने राष्ट्रपति के बेटे को टिकट दिया। तो डा. सुनील क्या करें। पहले बगल की त्योसा या अचलपुर की पेशकश हुई। पर यह तो कोई बात न हुई। राजेंद्र शेखावत को ही मुंह मांगी सीट क्यों? सो डा. सुनील अमरावती लौट चुके। अपन को बगावत की पूरी उम्मीद। ऐसा नहीं, जो राष्ट्रपति का बेटा पहली बार चुनाव लड़ रहा हो। वीवी गिरी जब राष्ट्रपति थे। तो उनका बेटा वी शंकर गिरी चुनाव लड़ा था। पर वह जीत गया था। सोचो, राष्ट्रपति का बेटा हारा। तो कांग्रेस की कितनी भद्द पिटेगी। सोनिया ने मौजूदा एमएलए की टिकट काट दी। पर विलासराव के बेटे अमित को लटका दिया। सुशील कुमार शिंदे की बेटी प्रणीति को लटका दिया। शिवराज पाटिल की पुत्रवधु अर्चना को लटका दिया। पर बेटे-बेटियों को टिकट सिर्फ कांग्रेस से ही नहीं। वंशवादी राजनीति में अब बीजेपी भी पीछे नहीं। प्रमोद महाजन की बेटी पूनम को टिकट मिल ही चुका। अपन बता दें- पूनम महाजन के फूफा हैं गोपीनाथ मुंडे। सो फूफा-भतीजी दोनों चुनाव लड़ेंगे। यहीं पर बस होता। तो गनीमत थी। मुंडे की बेटी और दामाद भी टिकट पा गए। भतीजा धनंजय मुंडे का नाम अगली लिस्ट में हो। तो आप हैरान न होना। एक परिवार से पांच एमएलए हुए। तो रिकार्ड टूटेगा। विजय राजे सिंधिया, माधवराव सिंधिया और वसुंधरा एक ही वक्त सांसद थे। यों अब इसी परिवार के दो सांसद बुआ यशोधरा, भतीजा ज्योतिरादित्य। दूसरी बुआ वसुंधरा राजस्थान की एमएलए। चलते-चलते बात हरियाणा की। भजन लाल का बेटा चंद्रमोहन। वही फिजा वाला चांद मोहम्मद। अच्छा भला डिप्टी सीएम था। पर इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया। अब टिकट भी नहीं मिला। न खुद को, न पुरानी बीवी को। जिसके लिए घूम रहे थे दर-दर।

'टिवटर' के बाद आज 'फेस बुक' की बात। रेखा का भांजा है नवीद अजमन। अपन फिल्मी हिरोइन रेखा की बात कर रहे। मौसी टॉप हिरोइन हो। तो भांजे को उम्मीद होगी ही। जब नेताओं के बेटों-बेटियों को टिकट की उम्मीद। तो नवीद अजमन की उम्मीद फिल्म में रोल था। जब आमिर खान ने अपने भांजे इमरान को फिल्म दिला दी। तो नवीद अजमन की उम्मीद भी जायज। आखिर वह तो आमिर से बड़ी स्टार का भांजा। सो केलिफोर्निया से बड़ी हसरतें पालकर मुंबई पहुंचा था। सालभर मुंबई की खाक छानता रहा। पर रेखा ने धेले की मदद नहीं की। बड़े रुआंसे होकर केलिफोर्निया लौट गए।