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Exclusive Articles written by Ajay Setia

अभिव्यक्ति की आज़ादी वालो का बदरंग चेहरा

Publsihed: 08.Jan.2017, 21:51

चुनाव आ गए . तो ची-ची करने वाले भी आ गए . साक्षी महाराज ने ऐसा क्या कहा था. जो बवाल हुआ. साल भर पहले जो अभिव्यक्ति की आज़ादी मांग रहे थे. वही साक्षी महाराज से अभिव्यक्ति की आज़ादी छीनना चाहते हैं. जो अपन ने टीवी चैनलो पर सुना. वही तो आप ने भी सुना होगा. वह मेरठ के शनिधाम मंदिर में बोल रहे थे. सुनने वाले भी सारे साधु-संत ही थे. संत समागम जो था.  उन ने कहा- बच्चो का भविष्य बेहतर कैसे बने.  सब से बडी समस्या तो आबादी है. जो सुरसा के मुह्न की तरह बढ रही. चार बीवी , चालीस बच्चो का जमाना नहीं रहा. अब बताईए इस में क्या गलत है. पर पिल पडे सारे अभिव्यक्ति की आज़ादी वाले.

सात साल बाद फिर निकला मुहुर्त

Publsihed: 07.Jan.2017, 21:45

अपन की वापसी हो रही है. फिलहाल अखबार में नहीं. अलबत्ता यही पर. अपने मशहूर "इंडिया गेट से" कालम की वापसी. जो अपन ने 1997 में शुरु किया था. दस साल तक अपन राजस्थान के नवज्योति में यह कालम लिखते रहे. नवज्योति ने भी गजब का प्रयोग किया. न उस से पहले किसी ने ऐसा किया था. न बाद में कभी किसी ने हिम्मत दिखाई.दस साल तक पहले पेज पर पहला कालम. दीन बंधु चौधरी को दिल से आभार. उन ने मौका दिया . तो अपन ने भी मन से लिखा. जम के लिखा. राजस्थान में कोई ऐसा अफसर नेहीन था. जो रोज अपना कालम नहीं पढता था. राजस्थान में कोई ऐसा नेता नहीं था. जो रोज सुबह अपन को नहीं पढता था.

कांग्रेस बोली- 'नई बात नहीं महंगाई तो हम साथ लाए थे'

Publsihed: 24.Feb.2010, 06:04

यह अपनी मनगढ़ंत बात नहीं। खुद कांग्रेस ने कहीं है यह बात। वह भी कोई छोटे-मोटे नेता ने नहीं। अलबत्ता सोनिया की बगल में खड़े होकर कही गई। वह भी ताल ठोककर। कहां कही, किसने कही, कब कही। उस सबका खुलासा अपन बाद में करेंगे। पहले बात संसद ठप्प होने की। पहले ही दिन दोनों हाऊस नहीं चले। शुकर है इस बार विपक्ष ने जनता का मुद्दा उठाया। महंगाई का। जिस पर कांग्रेस के सहयोगी भी घुटन महसूस कर रहे। खासकर ममता और करुणानिधि की पार्टियां। लालू-मुलायम भी। जो सरकार के साथ हैं, या नहीं। वे खुद भी नहीं जानते। सहयोगियों की बात छोड़िए। कांग्रेस की सांसद मीरा कुमार भी बोली- 'महंगाई से सचमुच जनता त्रस्त। सदन में प्रभावी बहस होनी चाहिए।' पर यह बात उनने कही बाहर आकर। अंदर काम रोको प्रस्ताव उन्हीं ने मंजूर नहीं किया। नामंजूर भी नहीं किया।

अमीर हो गए हैं लोग, मंहगाई का असर नहीं

Publsihed: 23.Feb.2010, 09:59

अपन को भी पार्लियामेंट कवर करते दो दशक होने को। ऐसा ढुलमुल अभिभाषण किसी सरकार का नहीं सुना। अभिभाषण पढ़ते भले ही राष्ट्रपति हों। तैयार करती है सरकार। मंजूरी देती है केबिनेट। सो मनमोहन सरकार का अभिभाषण बेअसर सा रहा। ढुलमुल सा रहा। जैसे बचाव की मुद्रा में खड़ी हो सरकार। समस्याओं के बचाव में अजीबोगरीब दलीलें पेश हुई। कुछ समस्याओं से तो कबूतर की तरह आंख ही मूंद लीं। जैसे तेलंगाना का जिक्र तक नहीं। नौ दिसंबर का ऐलान कांग्रेस के जी का जंजाल बन चुका। न बनते बन पड़ रहा है, न उगलते। टाइमपास करने को कमेटी बनी। तो उसकी शर्तें बदनीयती की पोल खोल गई। अब तेलंगाना राष्ट्र समिति की मुखालफत तो अपनी जगह। तेलंगाना के कांग्रेसियों को भी अपने आलाकमान की नीयत पर शक। अपने प्रधानमंत्री की नीयत पर शक। बजट सत्र के पहले दिन ही कांग्रेस को मुखालफत का स्वाद चखना पड़ा।

सत्ता चिड़िया की आंख बीजेपी ने तान लिया बाण

Publsihed: 20.Feb.2010, 06:24

शुक्रवार बीजेपी अधिवेशन का आखिरी दिन था। आंदोलन की रूपरेखा सामने आई। दूसरे दिन राम मंदिर की तान अलापी गई। तो तीसरे दिन गंगा मैया और मुस्लिम आरक्षण छाया। तीनों मुद्दे हिंदुत्व के। यों नितिन गड़करी कट्टर हिंदूवादी नहीं। पर संघ की लाईन तो लेनी पड़ेगी। यों बात महंगाई, राष्ट्रीय सुरक्षा और कश्मीर की भी हुई। जिनका देश की जनता से सीधा वास्ता। पर मीडिया को चाहिए वे तीनों मुद्दे। जिनसे बीजेपी को सांप्रदायिक ठहराया जाए। जो नितिन गड़करी ने थमा दिए। मंदिर का मुद्दा तो जैसे मीडिया से डरकर आया। कहा- 'मैं मंदिर का मुद्दा नहीं उठाऊंगा। तो मीडिया कहेगा- मुद्दा छोड़ दिया।' वैसे उनने कोई नई बात नहीं कही। कांग्रेस 'मंदिर दो, मस्जिद लो' फार्मूले से भी परेशान सी दिखी। पर खुद कांग्रेस को नरसिंह का वादा याद नहीं। उनने मस्जिद बनाने का वादा किया था। गड़करी ने राम मुद्दे पर सिर्फ रस्म अदायगी की।

ब्यूरोक्रेसी की अकल ठिकाने लगाई तीन दस जनपथियों ने

Publsihed: 17.Feb.2010, 10:18

सरदार पटेल के समय में जरूर ऐसा होता था। जब कोई मंत्री पीएम से उलझने की हिम्मत करे। इंदिरा के जमाने से वैसी हिम्मत फिर किसी ने नहीं की। जिसने भी हिम्मत की। वह केबिनेट से बाहर हो गया। वीपी सिंह का राजीव से टकराव पुरानी बात नहीं। अरुण नेहरू, अरुण सिंह और आरिफ मोहम्मद खान टकराव पर आए। तो केबिनेट से बाहर होना पड़ा। पर नेहरू से टकराव मोल लेकर भी पटेल मंत्री बने रहे। पटेल ने तो दो बार इस्तीफा भी दिया। पर नेहरू की इतनी हिम्मत नहीं थी। जो पटेल का इस्तीफा मंजूर कर लेते। श्यामाप्रसाद मुखर्जी का भी नेहरू से टकराव रहा। मुखर्जी कांग्रेस में नहीं थे। फिर भी गांधी के कहने पर केबिनेट में थे। कश्मीर जाने के लिए परमिट के मुद्दे पर टकराव हुआ तो इस्तीफा दे दिया। सरदार पटेल का तो हैदराबाद और कश्मीर पर नेहरू से खुला टकराव था। नेहरू के साथ टकराव तो पहले राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू के साथ भी हुआ। हिंदू कोड बिल के खिलाफ थे राजेंद्र बाबू। उनने दो बार बिल वापस लौटाया। तीसरी बार दस्तखत करने पड़े। पर राजेंद्र बाबू ने विरोध जता दिया था। तिब्बत पर भी कड़ा टकराव था नेहरू और राजेंद्र बाबू में। तिब्बत को चीन का हिस्सा नहीं मानना चाहते थे राजेंद्र बाबू। राजेंद्र बाबू का असली टकराव तो नेहरू के साथ सोमनाथ मंदिर पर हुआ।

मुंबई के बाद हो गया पुणे, बात से फिर भी नहीं परहेज

Publsihed: 16.Feb.2010, 10:11

बारह फरवरी को अपन ने लिखा था- 'अमेरिकी दबाव में बात, पर आतंकियों का घर है पाक।' इसी में अपन ने खुलासा किया था- 'कुरैशी ने होलबु्रक को भारत में मुंबई नहीं दोहराने की गारंटी नहीं दी।' और तेरह फरवरी को पुणे में मुंबई दोहराया गया। कौन हैं कुरैशी। कौन हैं होलबु्रक। पाक के विदेशमंत्री हैं शाह महमूद कुरैशी। अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के दक्षिण एशिया दूत हैं होलबु्रक। भले ही एसएम कृष्णा इंकार करें। या चिदंबरम और एंटनी। पर अपन को शक। बातचीत का न्योता होलबु्रक के हाथ ही गया था। अठारह-उन्नीस जनवरी को होलबु्रक दिल्ली में थे। बीस-इक्कीस को इस्लामाबाद में। चार फरवरी को न्योता भेजे जाने का खुलासा हुआ। तो कहा गया था- 'न्योता पंद्रह दिन पहले भेजा गया था।' अब हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े-लिखे को फारसी क्या। कुरैशी ने वादा नहीं किया। अपन ने फिर भी न्योता वापस नहीं लिया।

तेलंगाना में आग भड़की तो कबूतर ने आंखें मूंद ली

Publsihed: 13.Feb.2010, 08:04

तेलंगाना पर आयोग बनाकर आग बुझाई थी। आयोग की शर्तों ने आग फिर भड़का दी। नौ दिसंबर कांग्रेस के जी का जंजाल बन गया। उस दिन सोनिया का जन्म दिन था। तेलंगाना के कांग्रेसी नेता बधाई देने पहुंचे। तो तेलंगाना का रिटर्न गिफ्ट मांग लिया। सोनिया ने उसी दिन कोर कमेटी की धड़ाधड़ा मीटिंगे बुलाई। रात ग्यारह बजे तीसरी कोर कमेटी से निकले चिदंबरम ने कहा- 'सरकार तेलंगाना बनाने पर सहमत।' न सहयोगी दलों से पूछा। न केबिनेट से फैसला हुआ। नादिरशाही का जो नतीजा निकलना था। वही निकला। सोनिया ने सोचा था- तेलंगाना बनेगा। तो चंद्रबाबू और जगनरेड्डी कहीं के नहीं रहेंगे। दोनों सिर्फ चार जिलों वाले रायलसीमा के नेता रह जाएंगे। ग्यारह जिलों वाले तटीय आंध्र से कांग्रेस का नया नेतृत्व उभरेगा।

पवार की हरकतों पर कांग्रेस की तिरछी नजर

Publsihed: 11.Feb.2010, 06:09

देवीसिंह शेखावत के खिलाफ कोर्ट फैसले से कांग्रेस में हड़कंप। चौबीस अकबर रोड और दस जनपथ ने फौरी पड़ताल की। अभिषेक मनु सिंघवी को खबर नहीं थी। ब्रीफिंग खत्म हुई। तो उनने सवाल पूछने वाले से डिटेल पूछी। तभी एक मराठी मानुष खबरची ने कहा- 'जमीन घोटाले का मामला नया नहीं। अभी तो कई और घोटाले खुलेंगे।' सिंघवी ने साफ किया- 'राष्ट्रपति के परिवार को कानूनी कार्रवाई से छूट नहीं।' राष्ट्रपति भवन ने भी मुकदमे से नाता तोडा। कहा- 'किसी निजी व्यक्ति के मामले से राष्ट्रपति भवन का ताल्लुक नहीं।' अपन को राष्ट्रपति चुनाव में हुए आरोप-प्रत्यारोप नहीं भूले। कांग्रेस ने तब यह कहकर पीछा छुड़ाया था- 'उम्मीदवार पर तो कोई आरोप नहीं।' सवाल दागे गए। तो जवाब अब भी वही होगा।

तो कांग्रेस का आपरेशन आजमगढ़ शुरू होगा अब

Publsihed: 10.Feb.2010, 10:06

तो दिग्गी राजा ने कांग्रेसी प्रवक्ताओं की हवा खिसका दी। अपन भी हैरान थे। दस जनपथ के इशारे बिना तो आजमगढ़ नहीं गए होंगे दिग्गीराजा। वही सच निकला। दिग्गी राजा ने सोनिया को आजमगढ़ दौरे की रपट दी। तो कांग्रेसी प्रवक्ताओं की घिग्गी बंध गई। अभिषेक मनु सिंघवी, मनीष तिवारी, शकील अहमद को पता ही नहीं था। इसीलिए परेशानी का इजहार कर गए। प्रवक्ताओं को पता ही नहीं लगती- सोनिया-राहुल की रणनीति। खुद सोनिया गांधी और राहुल ने दिग्गी को सौंपा था आपरेशन आजमगढ़। जो दिग्गी राजा की रपट से पूरा नहीं हुआ। अलबत्ता आपरेशन तो अब शुरू होगा। सोनिया को सौंपी लिखित रपट दाखिल खारिज नहीं होगी। अलबत्ता रपट की एक-एक सिफारिश पर अमल होगा।