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Published: 16.Dec.2020, 20:10

अजय सेतिया / प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रीय स्वय: सेवक संघ के सालाना कार्यक्रम में जा कर कांग्रेस और सोनिया गांधी को जितना परेशानी में नहीं डाला था , उस से ज्यादा उन के देहांत के बाद छप रही उन के संस्मरणों पर आधारित पुस्तक “ दि प्रेजीडेन्शियल इयर्स “ ने डाल दिया है | रूपा प्रकाशन से छप रही पुस्तक अगले महीने बाज़ार में आने वाली है , जैसा कि आमतौर पर होता है , पुस्तक के प्रकाशक ने कुछ अंश जारी कर के सोनिया गांधी को शर्मसार कर दिया है, क्योंकि पुस्तक में प्रणब मुखर्जी ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने पर सवाल उठाए हैं और 2014 में कांग्रेस की हार के लिए सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को जिम्मेदार ठहराया है | उन्होंने यहाँ तक लिखा है कि मनमोहन सिंह सरकार चलाने की बजाए सरकार बचाने में लगे रहते थे , 2012 में उन के राष्ट्रपति बनने के बाद तो सरकार का राजनीतिक दृष्टिकोण ही खत्म हो गया था |

अपन सब जानते हैं कि सोनिया गांधी यूपीए की नेता चुनी गई थी , और वह राष्ट्रपति भवन में सरकार बनाने का दावा पेश करने गई थीं , वहां से लौट कर उन्होंने दस जनपथ पर बैठक बुलाई थी | अपन उस समय खबर हासिल…

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Published: 15.Dec.2020, 23:27

अजय सेतिया / कोरोनावायरस जब अपने पूरे शबाब पर था , तो 40 दिन बाद लाकडाउन खोलना शुरू कर दिया गया था , क्योंकि देश की आर्थिकी तबाही के कगार पर पहुंच गई थी | अब ट्रेनों को छोड़ कर शायद कुछ बचा नहीं , सब कुछ खुल चुका है | सुनते हैं जब ट्रेनें खुलेंगी तो कुछ ट्रेनें और सारे स्टेशन प्राईवेट हाथों में होंगे | इस बीच कोरोना काल में ही बिहार विधानसभा और देश के अन्य राज्यों की खाली सीटों पर भी चुनाव हो गए | लाकडाउन के दौरान ही संसद का मानसून सत्र भी बुलाया गया , जिसमें हल्ले गुल्ले के दौरान ही कृषि बिल पास करवाए गए ,जो अब मोदी सरकार के गले की फांस बने हुए हैं | लोग सवाल कर रहे हैं कि लाकडाउन पीरियड में कृषि बिलों को पास करवाने की क्या जल्दबाजी थी | वह भी तब जब कि अध्यादेश जारी होने के बाद से पंजाब के किसान आन्दोलन कर रहे थे | तब किसानों की कुछ गिनी चुनी आपत्तियां थी , बिल पास करवाने से पहले उन्हें सुन कर समाधान निकाल लिया जाता तो आज इतना बड़ा आन्दोलन खड़ा ही नहीं होता |

मोदी सरकार अब उन तीन बिलों की छह आपतियों को दूर करने के लिए कानूनों में संशोधन करने के साथ ही पराली जलाने पर…

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Published: 14.Dec.2020, 23:20

अजय सेतिया / दो दिन पहले फिक्की के एक कार्यक्रम में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि पूर्वी लद्दाख में जो कुछ हुआ, वह चीन के हित में नहीं है | वह कोई भविष्यवाणी नहीं करना चाहते कि यह तनाव कितना लंबा खिंचेगा या कब तक समाधान निकलेगा | एस. जयशंकर राजनीति में नए नए रंगरूट हैं , इस लिए एक एक शब्द संभल कर बोलते हैं , क्योंकि उन की नौकरी कभी भी जा सकती है | सोचिए उन की जगह पर सुषमा स्वराज होती तो वह क्या कह्र्तीं | वह कहतीं कि चीन आग से खेल रहा है , भारत अब 1962 का नेहरु का भारत नहीं है , यह नरेंद्र मोदी का भारत है | एस. जयशंकर विदेश नीति में नेहरूवादी हैं , उन के पिता के सुब्रहमण्यम हालांकि ब्यूरोक्रेट से रक्षा विशेषग्य बन गए थे , लेकिन थे वह भी नेहरुवादी | इस लिए अपन को नेहरूवाद से बाहर निकल कर वैसे ही सोचना होगा , जैसे अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोचते हैं |

मोदी ने नेहरु की गलतियों को एक एक कर सुधारना शुरू कर दिया है | जम्मू कश्मीर को भारत का अभीन्न अंग बनने में नेहरु की थोंपी हुई रुकावट 370 हटा दी गई है , नेहरु ने सोमनाथ मंदिर का खुद उद्घाटन नहीं किया और राष्ट्र…

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Published: 11.Dec.2020, 22:46

अजय सेतिया / गुरूवार को भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा के काफिले पर हुए हमले के बाद शुक्रवार के अपने कालम में अपन ने लिखा था कि पश्चिम बंगाल में अब राष्ट्रपति शासन की जरूरत है | केंद्र सरकार ने शुक्रवार शाम को ही राज्यपाल जगदीप धनखड से क़ानून व्यवस्था पर रिपोर्ट मांग ली थी , अपनी नियुक्ति के समय से ममता बेनर्जी का फूहडपन झेल रहे राज्यपाल ने तुरत फुरत करीब 15 पेज की विस्तृत रिपोर्ट भेज भी दी | चन्द्र शेखर सरकार में मंत्री रहे जगदीप धनखड़ सुप्रीमकोर्ट के धाकड़ वकील रहे हैं | वह मेधावी छात्र थे, आईआईटी, एनडीए और आईएएस तक की परीक्षाएं पास करने के बावजूद उन्होंने वकालत को चुना था | अपन उन्हें कोई 20 साल से जानते हैं और उन की कार्यशैली भी जानते हैं , पिछले साल जब उन की नियुक्ति हुई थी , अपन ने तभी कहा था कि ममता बेनर्जी से निपटने के लिए उन से बेहतर राज्यपाल और कोई नहीं हो सकता था | हालांकि अपनी फितरत के विपरीत उन्होंने पिछले डेढ़ साल में ममता और ममता के गुंडेनुमा कार्यकर्ताओं के अलावा वामपंथी गुंडों के हाथों भी अपमान का घूँट पिया है |

कोई एतराज कर सकता है कि अपन ने ममत…

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Published: 10.Dec.2020, 22:21

अजय सेतिया / किसान आन्दोलन पर अगर कम्युनिस्ट पार्टियों का नियन्त्रण नहीं होता , तो 9 दिसम्बर को केंद्र सरकार की ओर से भेजे गए लिखित आश्वासनों के बाद आन्दोलन खत्म हो जाता और बातचीत शुरू हो जाती | उसी दिन राष्ट्रपति को मिले पांच नेताओं में से राहुल गांधी को छोड़ कर कोई भी उत्तर भारत का नहीं था | इस लिए राष्ट्रपति भवन से निकल कर राहुल गांधी के अलावा किसी ने भे मीडिया से हिन्दी में बात नहीं की | वैसे राहुल गांधी को भी अमेठी ने ठुकरा दिया है और वह केरल से चुन कर आए हैं , तमिलनाडू के टी आर बालू  और महाराष्ट्र के शरद पवार के अलावा बंगाल और केरल के  दो कम्युनिस्ट नेता सीता राम येचुरी और डी. राजा थे | येचुरी और डी. राजा से पूछना चाहिए कि उन्होंने बंगाल में अपने शासन के दौरान किसानों का क्या हाल किया था | कम्युनिस्ट सरकार इंडोनेशियाई सलीम समूह के एसईजेड के लिए नंदीग्राम में 10 हजार एकड़ जमीन का जबरदस्ती अधिगृहण कर रही थी , जिस का स्थानीय किसान विरोध कर रहे थे | किसानों का आन्दोलन कुचलने के लिए कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने 4,000 से ज्यादा सशस्त्र पुलिस भेज कर किसानो…

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Published: 09.Dec.2020, 21:04

अजय सेतिया / अपनी पक्की धारणा है कि आज़ादी के बाद अंग्रेजों की बनाई ब्यूरोक्रेसी को जस का तस बनाए रखना लोकतंत्र को सही अर्थों में लागू करने में सब से बड़ी बाधा है | 1980 बैच के आईएएस और नरेंद्र मोदी के सब से प्रिय निति आयोग के सीईओ अमिताभ कान्त का ताज़ा बयान अपनी धारणा की पुष्टि करता है | स्वराज पत्रिका के एक वीडियो कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए अमिताभ कान्त ने कहा कि लोकतंत्र भारत की सब से बड़ी समस्या है | अंग्रेजों ने ब्यूरोक्रेसी को भारत पर शाषण करने में सहयोग करने के लिए बनाया था , तब भारत गुलाम था और ये अंग्रेजों की औलाद अपन गुलामों पर राज करने के लिए बनाई गई थी | चयन के बाद आईएएस अफसरों को शायद अभी भी यही ट्रेनिंग दी जाती है कि वे स्थाई शाषक हैं जबकि लोकतंत्र में चुने हुए जन प्रतिनिधि आते जाते रहेंगे | 

देश का दुर्भाग्य यह है कि शाषण में बाधा बनने के बावजूद ये लोकतंत्र विरोधी ब्यूरोक्रेट्स राजनीतिक नेताओं को अपना आका बनाने में कामयाब हो जाते हैं , जिस कारण रिटायरमेंट के बाद भी सालों साल निति निर्धारक बने रहते हैं , हालांकि निर्णायक पदों पर बैठ कर कारपोरेट घरा…

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Published: 08.Dec.2020, 21:36

अजय सेतिया / अपन ने कल लिखा था कि किसान टुकड़े टुकड़े गैंग के चंगुल में फंस गए हैं | इस के दो सबूत अपने सामने आ चुके हैं , किसानों के अंदर घुस कर तीनों कृषि कानूनों को रद्द करवाने की मांग रखवाने में कामयाब होना और बातचीत के दौरान ही भारत बंद की अपील | गैर भाजपा दल इस घटनाक्रम से उत्साहित हैं , क्योंकि उन्हें सडक पर उतरने का मौक़ा मिल गया | एनडीए शाषण वाले यूपी , उतराखंड , बिहार और कर्नाटक में विपक्षी दलों ने सडकों पर उतर कर प्रदर्शन किए और गैर भाजपा शाषित राज्यों में सरकारों ने खुद बंद करवाने की कोशिश की | किसानों के कुछ नेता टुकड़े टुकड़े गैंग और विपक्ष की चाल को समझ गए थे कि वे केंद्र के साथ वार्ता को पटरी से उतारना चाहते हैं , लेकिन तब तक देर हो चुकी थी , फिर भी उन्होंने वक्त रहते राजनीतिक नेताओं को अपने मंच पर नहीं चढने देने का एलान कर दिया |

अब जब किसान मंच पर नहीं चढने दे रहे तो राहुल गांधी पांच विपक्षी नेताओं के साथ बुधवार को राष्ट्रपति से मुलाक़ात कर तीनों कृषि बिलों को वापस लेने की मांग करेंगे | वे जानते हैं कि राष्ट्रपति के हाथ में कुछ नहीं होता , पर राजनीति में…

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Published: 08.Dec.2020, 00:27

अजय सेतिया / पंजाब का किसान अपनी मांगो को ले कर दिल्ली के लिए चला था तो पर्दे के पीछे से पंजाब के मुख्यमंत्री और पंजाब प्रदेश कांग्रेस का समर्थन था , जबकि पंजाब की कम्युनिस्ट पार्टी खुल्लम खुल्ला समर्थन कर रही थी | दिल्ली कूच करने से पहले जब तीन महीनों तक पंजाब का किसान आन्दोलन कर रहा था तो वे स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट को स्वीकार करने और उस के मुताबिक़ कृषि सुधार की मांग कर रहे थे | पंजाब के मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह उन्हें समझा रहे थे कि स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट तो केंद्र सरकार ही स्वीकार क्र सकती है , क्योंकि यह कमेटी केंद्र सरकार ने ही बनाई थी और तीनों क़ानून भी केंद्र सरकार ने पास किए है , हम ने तो विधानसभा से तीनों कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव भी पास करवा दिया है , इस लिए आप दिल्ली जाओ , इस तरह उन्होंने आन्दोलन का मुहं दिल्ली की ओर कर दिया था |

पर मुद्दे की बात यह है कि कांग्रेस अब उन तीन कानूनों का विरोध कर रही है , जिसे वह खुद लागू करना चाहती थी , लेकिन कर नहीं सकी थी  | जहां तक स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट का सवाल है तो कमेटी की नियुक्ति मनमोहन सिंह ने 2…

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Published: 06.Dec.2020, 21:32

अजय सेतिया / अपनी यह पक्की धारणा है कि अदालतें और ब्यूरोक्रेसी समस्याएं सुलझाती कम हैं , उलझाती ज्यादा हैं | अब कृषि सम्बन्धी तीनों कानूनों को ही लें , मोदी सरकार को इस मोड़ पर ब्यूरोक्रेसी ने ला कर खड़ा किया है | मोदी सरकार से अब न उगला जा रहा है, न निगला जा रहा है | पहले 2014 का चुनाव जीतने के कुछ महीनों के भीतर संसद सत्र का इन्तजार किए बिना जनवरी 2015 में भूमि अधिकरण अध्यादेश जारी किए गए और अब दूसरी बार चुनाव जीतने के कुछ महीनों के भीतर कृषि सम्बन्धी तीन अध्यादेश जारी कर के संसद में हंगामें के दौरान पास करवा लिए गए | मोदी सरकार को कृषि भूमि अधिगृहण अध्यादेश वापस लेना पड़ा था और अब हालात ऐसे बन गए हैं कि सरकार को तीनों कृषि क़ानून भी वापस लेने पड़ेगें , क्योंकि किसानों का आन्दोलन विशाल रूप ले चुका है |

जब जून 2020 में अध्यादेश जारी किए गए थे अपन तब से लिखते रहे हैं कि तीनों कृषि क़ानून किसान विरोधी हैं | ब्यूरोक्रेसी ने विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ के दबाव और बड़े उद्धोगपतियों के दबाव में ये किसान विरोधी बिल तैयार किए थे | अपन यह बार बार लिखते रहे हैं कि चुनाव जीतन…

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Published: 04.Dec.2020, 21:39

अजय सेतिया / वोटरों की मार से पस्त हुआ देश का विपक्ष किसान आन्दोलन से उम्मींद लगा कर बैठा है | वैसे 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ऐसे कई आन्दोलन खड़े किए गए | सब से पहले तो मोदी सरकार को अल्पसंख्यक विरोधी करार देने के लिए दिल्ली की चर्चों में हुई छोटी मोटी चोरी चकारी की वारदातों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित किया गया | फिर जेएनयू के कम्युनिस्ट छात्रों ने भारत के टुकड़े करने का बीड़ा उठाया , तो समूचा विपक्ष वहां पहुंच गया था | हैदराबाद में ओबीसी छात्र रोहित वैमूला की आत्महत्या को मोदी सरकार की दलित विरोधी नीति बता कर समूचा विपक्ष वहां पहुंच गया था | माब लिंचिंग की एक घटना को अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाने के लिए वामपंथियों ने कांग्रेस सरकारों में मिले अवार्डों को लौटाने का ड्रामा शुरू किया | फिर भीमा कोरेगांव की साजिश हुई, जिस में विपक्ष समर्थक शहरी नक्सलियों ने दलित-गैर दलित हिंसक दंगे करवाने की साजिश रची थी |

लेकिन देश की जनता पर इन साजिशों का कोई असर नहीं हुआ | भाजपा एक एक कर विधानसभाओं का चुनाव जीतती चली गई | मोदी के दुबारा चुन कर आने के बाद मोदी ने…

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