भक्त अब उन्हें भडुए कहें तो कैसा रहे
लक्ष्मी नारायण शीतल मंजे हुए पत्रकार हैं. उन्होने दिग्विजय सिंह को निशाना बना कर एक लेख लिखा.जिस का शीर्षक दिया था 'सियासी तवाइफखाने के भडुए'. मुझे शुरू में इस शब्द पर कडा एतराज था.आज भी है. हमें संसदीय भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए. लेकिन उन के उस लेख को खासी तारीफ मिली.इस से बात जाहिर हुई कि समाज अब क्या सोच रहा है. शीतल जी ने सियासी वर्ग के लिए भडुए शब्द का इस्तेमाल किया. लेकिन एक दूसरा वर्ग है जो सोशल मीडिया पर सरकार के समर्थकों को भक्त लिख रहा है.यह खुद को बुद्धिजीवी वर्ग कहलाता है और पिछली सरकार का समर्थक था.तब इन्हें भद्र लोगों ने कभी भक्त नहीं कहा.