कश्मीर के हालात पर ग्रांऊड जीरो रिपोर्ट

Publsihed: 17.Sep.2019, 22:02

नई दिल्ली। जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के निष्प्रभावी होने के बाद अब जम्मू कश्मीर और लददाख बदलाव और उम्मीद की एक नई करवट ले रहा है।कश्मीर में आम आदमी की जिंदगी जहां आशा और आशंका में लिपटी हुई नजर आती है वहीं कश्मीर से अलग केंद्र शासित राज्य बनने को लेकर लददाख में आम आदमी खुलकर खुशी जताता मिलता हैं।घाटी में शांतिपूर्ण चुप्पी छाई है तो जम्मू में विकास की नई उम्मीद जागी है। इस सबके बीच कश्मीर में अलगवादियों और आतंकवादियों की ओर से बंदूक,पत्थरबाजी भड़काऊ पोस्टर—बयान और हरकतों से डर का वातावरण बनाने की कोशिश की जा रही है। नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) के नेतृत्व में विभिन्न मीडिया संस्थानों के पत्रकारों के एक प्रतिधिनिधिमंडल ने हाल ही में जम्मू कश्मीर और लददाख का अलग अलग दौरा कर विभिन्न वर्गों के लोगों के साथ संवाद किया तो कई चौकाने वाली बातें उभर कर सामने आई। कश्मीर में संवाद के दौरान लोगों में जहां अपनी रोजी रोटी को लेकर चिन्ता नजर आई वहीं पाकिस्तान पोषित आतंकवाद और अलगाववादियों के साथ—साथ कश्मीर के स्थानीय नेताओं के खिलाफ नाराजगी दिखाई दी।यह भी पता चला कि कश्मीर में अधिकांश लोगों को अनुच्छेद 370 के नफे नुकसान के बारे में अधिक जानकारी नहीं है।

पत्रकारों के इस छह सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने श्रीनगर सहित कश्मीर के अलग अलग क्षेत्रों में अल्पसंख्यक सिख एवं हिन्दू समुदाय, शिया समुदाय,गांव के पंच और सरपंचों, किसानों, छात्रों,शिक्षित बेरोजगार युवकों, सुरक्षा कर्मियों, पत्रकारों, वकीलों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं सहित करीब डेढ सौ लोगों से अलग अलग मुलाकातें कीं और उनके विचारों को जानने का प्रयास किया। अधिकतर लोगों ने बातचीत की लेकिन अधिकांश लोग अपनी पहचान उजागर करने के लिए तैयार नहीं थे।पत्रकारों के प्रतिनिधिमंडल ने राज्य के राज्यपाल सत्यपाल मलिक से भी विभिन्न  मुद्दों पर चर्चा की।प्रतिनिधिमंडल में वरिष्ठ पत्रकार हितेश शंकर,नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) के राष्ट्रीय महासचिव मनोज वर्मा, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष राकेश आर्य,राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हर्षवर्धन त्रिपाठी,दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन के महासचिव सचिन बुधौलिया,उपाध्यक्ष आलोक गोस्वामी शामिल थे।

जम्मू में अनुच्छेद 370 के निष्प्रभावी होने से लोगों को राज्य के विकास की नई उम्मीद बंधी हैं वहीं कश्मीर में आशा और आशंका में लिपटी मिलीजुली राय देखने सुनने को मिलती है।श्रीनगर में लोगों में भविष्य को लेकर कई सवाल हैं और इन सवालों में भी विकास और रोजगार से जुडे सवाल अधिक हैं। अधिकांश लोग आतंकवादियों,अलगाववादियों और पाकिस्तान के मुद्दे पर कैमरे के सामने तो खुलकर बात करना नहीं चाहते लेकिन कैमरा हटते ही पाकिस्तान पोषित आतंकवाद और भय के माहौल के प्रति उनका गुस्सा फट पड़ता है। बदले माहौल में स्थानीय लोगों के बीच जमीन और रोजगार को लेकर कई सवाल और आशंकाएं है।इसलिए इन दोनों मुद्दों पर सरकार से ठोस पहल की उम्मीद कर रहे हैं। घाटी में इंटरनेट और मोबाइल नेटवर्क पर पांबदी से लोग खासकर युवा झुंझलाए हुए हैं। हालांकि प्रशासन ने लैंडलाइन फोन चालू कर तथा फोन बूथ लगाकर लोगों को राहत देने की कोशिश की है। कश्मीर के अलग अलग हिस्सों में लोगों ने अपने मन की बात कहीं तो यह भी पता चला कि अधिकांश लोगों को अनुच्छेद 370 के बारे में अधिक जानकारी भी नहीं है। उन्हें इसके नफे —नुकसान के बारें में भी नहीं पता था।

नए राज्य के निर्माण की दिशा में बढ रहे हैं जम्मू कश्मीर के लोगों में राज्य के प्रमुख स्थानीय राजनीतिक दलों और उनके नेताओं के खिलाफ जहां भारी नाराजगी देखने को मिली है वहीं राज्य में अब कोई भी एक ऐसा सर्वमान्य नेता दिखाई नहीं देता जिस पर जम्मू कश्मीर की जनता को भरोसा हो। एक दिलचस्प बात जो जगह जगह युवाओं से बात करने पर उभरी वह यह कि घाटी के युवा, इन नेताओं की नज़रबंदी से ज्यादा अपने स्मार्टफोन को उपयोगी मानते हैं। इसलिए नेताओं की नज़रबन्दी हटने से ज्यादा उन्हें अपने फोन चलने की चिंता है।विश्वसनीय राजनीतिक नेतृत्व का संकट कश्मीर की सबसे बडी समस्या उभर कर सामने आ रही है।दिलचस्प बात यह भी रही कि लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा गृहमंत्री अमित शाह को ऐसा निर्णायक नेतृत्व मानते हैं जिसमें अलगाववादी ताकतों को पस्त करने के लिये किसी भी हद तक जाने का हौसला और अपना नजरिया है।

दूसरी ओर आतंकवादी और अलगाववादी बंदूक की नोक पर, भड़काऊ बयानबाजी,पत्थरबाजी और हरकतों से राज्य में डर का वातावरण बनाने की लगातार कोशिश कर रह हैं। श्रीनगर और दक्षिणी कश्मीर कई हिस्सों में इस डर के चलते लोगों के कामधंधे लगभग ठप्प पडे हैं। वजह लोगों ने अपनी दुकाने खोलने की कोशिश की तो आतंकवादियों ने दो तीन दुकानदारों और कारोबारियों की हत्या कर डर पैदा करने की कोशिश की।सरकार आठ हजार करोड़ रुपये का सेब खरीद पैकेज देते हुए बगानों से सेब खरीद के लिए कदम बढ़ा रही है लेकिन अलगाववादी तत्व ट्रक तथा ड्राइवरों पर हमले की योजनाएं बना रहे हैं। अनंतनाग क्षेत्र में इसी तरह के एक हमले में ट्रक ड्राइवर की जान भी गई है। अलगाववादियों द्वारा दुकानदारों और कारोबारियों की हत्या और उन पर हमलों को लेकर लोगों में नाराजगी है। केंद्रीय सुरक्षा बलों को लेकर यूं तो शिकायतें नहीं हैं पर कई नौजवान ऐसे मिले जिन्हें इस बात की शिकायत थी कि पूछताछ के नाम पर स्थानीय पुलिस का रवैया ठीक नहीं रहता। वैसे राज्य में सरकार की ओर से कोई बंद नहीं है न दुकानें और न अखबार। दुकानें सुबह शाम पूरी और दिन में थोड़ा शटर खोलकर चल रही हैं। इस बात का पुख्ता सबूत यह भी है कि सभी एटीएम खुले हैं और लोग पैसे निकाल रहे हैं, यानी लेनदेन चल रहा है। जो पाबंदियां दिखती भी हैं तो उसकी वजह आतंकवादी, अलगाववादी हैं जो डर फैलाकर राज्य का मौहाल बिगाड़ने की कोशिश में हैं।

विभिन्न स्तरों पर बातचीत का लब्बोलुआब यह निकला कि कश्मीर की प्रशासनिक मशीनरी पूरी तरह से पीडीपी या नेशनल कॉन्फ्रेंस के काडरों से भरी है और पूरे प्रशासन में भ्रष्टाचार कूट कूट कर व्याप्त है। लोगों का दबी ज़ुबान से यह कहना था कि केन्द्र सरकार के संवैधानिक कदम का विरोध को अंदरखाने इसी प्रशासनिक मशीनरी से हवा मिल रही है। उनका कहना था कि उन पर आतंकवादियो,अलगाववादियों के साथ साथ स्थानीय ताकतों का खौफ कहीं ज्यादा है जो प्रशासन में बैठे हैं। इसे दूर करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रशासनिक फैसले और तबादले करने की जरूरत है। पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला,महबूबा मुफ्ती सहित राज्य के प्रमुख नेताओं और अलगवादी नेता की नजरबंदी के सवाल पर लगभग सभी एक मत नजर आए। लोगों की यह आम धारणा है कि अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवारों ने कश्मीरियों के साथ जितना छल किया उतना किसी ने नहीं किया।लिहाजा इन नेताओं की नज़रबंदी से वे खुश हैं।दूसरी ओर केंद्र शासित राज्य बनाए जाने को लेकर लददाख के लोगों में जश्न का मौहाल है। लोग खुल कर कैमरे पर अपनी बातों को प्रकट भी किया। लददाख में हर कोई यह बात कहता हुआ मिला कि कश्मीर के नेताओं ने लददाख के साथ हमेशा धोखा किया और विकास से दूर रखा। इसी तरह के विचार जम्मू में भी सुनने को मिले। जम्मू के लोगों में भी घाटी के नेताओं को लेकर साफ नाराजगी थी। 

 

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