जब पुलिस ने मेरे कपडे उतरवा लिए

Publsihed: 25.Jun.2018, 21:05

अजय सेतिया / अठारह साल की उम्र तब भी कोई ज्यादा नहीं होती थी | आज भी कोई ज्यादा नहीं होती | पर मैं 18 साल की उम्र में राजनीति में सक्रिय हो गया था | बात 1974 की गर्मियों की है | अबोहर ,जहां मेरा जन्म हुआ , में एक धरना चल रहा था | नगर पालिका के सामने धरना था शहर के एक मुहल्ले में पानी की दिक्कत धरने की वजह थी | हालांकि मैं उस इलाके का रहने  वाला नहीं था | पर बाल मन की उत्सुकतावश धरने में बैठ गया | संघ का स्वयसेवक तो बचपन से ही था | मुझे अब भी याद है , राज कुमार टंडन से उसी धरने में परिचय हुआ | कुछ माह बाद ही शहर में युवा जनसंघ बनाने का फैसला हुआ | कृष्ण लाल शर्मा संभवत: उन दिनों पंजाब , हरियाणा, हिमाचल, जम्मू कश्मीर के संगठन प्रभारी थे | जनसंघ का कार्यालय उन दिनों शहर के गांधी मैदान में राम शरण दास अरोड़ा की  दुकान के ऊपर एक कमरे में था | उसी कमरे में रात को मीटिंग हुई , कृष्ण लाल शर्मा तो थे ही, शहर के जनसंघ नेता रामशरण अरोड़ा, राम कृष्ण मित्तल वगैरह भी थे | अठारह से 25 साल की उम्र के  कोई  20-22 युवक मौजूद थे | मुझे युवा जनसंघ का अध्यक्ष और भूपेन्द्र स्नेही को सचिव चुना गया |

बस फिर तो राजनीति में सक्रियता बढ़ गयी | धरने,जलूस, जनसभाएं शुरू हो गईं | सुब्रहमन्यम स्वामी तब यूपी से जनसंघ के राज्यसभा सदस्य और युवा जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे | फरवरी 1975 में लुधियाना में प्रदेश युवा जन संघ का अधिवेशन हुआ | सुब्रहमन्यम स्वामी के साथ कुशाभाऊ ठाकरे भी आए थे | अबोहर से हम कोई  25 युवक इस अधिवेशन में ट्रक में गए थे | जय प्रकाश नारायण की लुधियाना में रैली हुई, तो मैं वहां भी युवकों को ले गया | जय प्रकाश नारायण का लालकिले से संसद कूच हुआ, तो मैं उस में शामिल होने दिल्ली भी पहुंचा | पजांब केसरी के मालिक और सम्पादक लाला जगत नारायण अबोहर से गुजर रहे थे | तो मैंने तालमेल कर के युवा जनसंघ की और से एक सेमीनार करवा दिया | विषय था -"इंदिरा गांधी और लोकतंत्र" इस सेमीनार में डीएवी कालेज के प्रोफ़ेसर एस.सी.नंदा, प्रोफ़ेसर.बी.एल.रिणवा और प्रोफ़ेसर प्रीतम लाल चावला ने भी भाषण किया | मेरी सक्रियता बढ़ती गयी | लोकल सीअईडी की निगाह में भी चढ़ता गया |

फिर जब बुधवार ,25 जून 1975 की रात को आपातकाल लगा, तो 26 जून शाम तक अबोहर से 20 लोगों की सूची बन चुकी थी | सीआईडी वाले इन बीस लोगों के ठिकानों पर निगरानी रखने लगे | जिस से सभी बीस लोग  सतर्क हो गएउसी दिन शाम को दस लोग  चाँद कुमार जायसवाल के घर मिले | और  फिलहाल छुप कर रहने का फैसला हुआ | अगले दो दिन हम सब अलग-अलग जगह पर छुपे हुए थेरविवार 29 जून की दोपहर को हमारी एक मीटिंग डीएवी कालेज की लाईब्रेरी के बरामदे में हुई |  बैठक में संघ के नगरीय अधिकारी और जनसंघ के कुछ नेता मौजूद थे | कुल संख्या 12 थी शायद |  इस मीटिंग में कुछ लोग थे, जिन्होंने कहा कि वे छुप कर नहीं रह सकते,उन्हें गिरफ्तार होने की इजाजत दी जाए | हरि सिंह गुम्बर ( पूर्व प्रचारक ) और मेरी ड्यूटी पोस्टर लिखने और उन्हें सही जगह पर रात को चिपकाने  और साथ में  दीवारें लिखने की लगाई गई | हमारे साथ 18 साल का एक लड़का सुभाष मैगो भी सहयोगी था, जो कढाई का काम करता था | हम शहर की नई आबादी में बलबीर सिंह बहल के घर पर रहते थे और वहीं से अपनी गर्तिविधियाँ चलाते थे |

पुलिस ने किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की थी, न वारंट निकले थे, न गिरफ्तारी हुई थी | लेकिन रात को मुख्य जगहों पर चिपकने वाले पोस्टरों और इंदिरा गांधी व आपातकाल  के खिलाफ लिखी दीवारों ने पुलिस की नींद हराम कर दी थी | इस बीच  पहले दस लोगों के वारंट की एक सूची  निकली  | जिन  पर आरोप था कि इन्होने  भगत सिंह की प्रतिमा के सामने इक्कठे हो कर इंदिरा गांधी के खिलाफ नारेबाजी की | इन दस लोगों में 19 साल 2 महीने के एक युवक का नाम भी शामिल था ,जो मैं था | धरपकड़ शुरू हो चुकी थी | पूर्व मंत्री चौधरी सत्यदेव और सरपंच चरण दास नागपाल सब से पहले गिरफ्तार हुए | बाकी सभी भूमिगत थे, लेकिन छापेमारी शुरू हो गयी थी | शायद वह तीन  या चार  जुलाई थी | जनसंघ के कुछ नेताओं ने बाज़ार में नारे लगाते हुए गिरफ्तारी दे दी थी |

पुलिस ने दो दिन तक मेरे घर वालों पर दबाव बनाया, फिर मेरे पिता जी को पकड़ कर थाने  ले गए | अब मुझ पर दबाव था, संघ-जनसंघ के अधिकारी भी नहीं चाहते थे कि मेरी जगह पर मेरे पिता जी थाने में पड़े रहें  | इस लिए कोशिश हुई कि मैं अगले दिन सुबह शहर के मुख्य बाज़ार में नारे लगाते हुए गिरफ्तारी दे दूं | राम शरण दास अरोड़ा और मैं जन संघ के एक पूर्व नेता ( जो उस समय कांग्रेस में शामिल हो चुके थे ) के घर गए और उन के माध्यम से पुलिस से सुबह होने तक 10-12 घंटे बाद पेश होने की मोहलत माँगी | लेकिन  पुलिस को प्रदर्शन कर गिरफ्तारी देने की हमारी रणनीति की भनक लग गयी थी | इस लिए वह नहीं मानी, इधर मुझ पर घर वालों का दबाव , अनत: मैं रात को 12 बजे के बाद पुलिस कोतवाली में पेश हुआ , तब मेरे पिता को तुरंत छोड़ दिया गया |

दो दिन बाद  रामकृष्ण  मित्तल, ओम प्रकाश शर्मा, मुकुंद लाल फुटेला,सत नारायण ,राज कुमार टंडन, राम शरण दास अरोड़ा , प्रहलाद कुमार गुप्ता, शाम लाल मोदी, सुभाष बजाज और कश्मीरी लाल नारंग की गिरफ्तारी हो गयीउन्हें उसी  दिन फाजिल्का में मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया और फिरोजपुर सेन्ट्रल जेल भेज दिया गया | लेकिन मुझे रोक लिया गया था | जिस कैदखाने के कमरे में मुझे रखा गया , उसी के कोने में एक शौच था, जिस के दो तरफ दो-दो फुट की दीवारें थी | ताकि शोच में बैठा व्यक्ति भी कैदखाने के गेट पर बदूक ले कर खड़े पुलिस वाले को दीखता रहेसीआईडी के अधिकारियों ने मुझे एक बंद कमरे में बुला कर पूछताछ की | वे जानना चाहते थे कि यह पोस्टरबाजी और दीवारें लिखने में कौन कौन शामिल है और संघ-जन संघ की क्या क्या योजना है | मुझे जितनी जानकारी थी, मैंने वह भी नहीं बताई | दो दिन बाद हरि सिंह गुम्बर भी कैदखाने में पहुंच चुके थे | फिर हमें फाजिल्का में अदालत में पेश किया गया | हम पर बर्तन चोरी का आरोप लगा कर हमारा तीन दिन का रिमांड लिया गया था | हमें वापिस अबोहर थाने में लाया गया | पुलिस ने राजनीतिक कैदियों पर चोरी जैसे आरोप लगाने में कोइ शर्म महसूस नहीं की | जीओस समय मुझ पर बर्तन चोरी का आरोप लगाया गया था, उसी समय पंजाब प्रांत के संघ कार्यवाह मित्रसेन जी पर  जालंधर में भैंस चोरी का आरोप लगा कर रिमांड लिया गया था |

पुलिस का घिनौना चेहरा उस के बाद उजागर हुआ, जब उन्हीं सवालों को लेकर मेरे सारे कपडे उतरवाए गए | चमड़े का पट्टा दिखा कर नंगा उलटा लिटाया गया | लेकिन उसी समय थाने में एक बड़ा पुलिस अधिकारी आ गया , जिस ने इसे बंद करने को कहा | मुझे कपडे पहनने को कह दिया गया | तीन दिन का रिमांड खत्म हुआ, तो हमें फिर पुलिस जीप में फाजिल्का ले जाया गया | अब जब अदालत में पेश किया गया, तो खेल पलट गया | मजिस्ट्रेट यह देख कर भड़क गया कि जो लड़का तीन दिन पहले भगत सिंह की प्रतिमा के सामने इंदिरा गांधी के खिलाफ नारे लगा रहा था, वह तीन दिन बाद बर्तन चोरी में कैसे गिरफ्तार किया गया | हालांकि उस आपातकाल में जजों की भी घिग्घी बंधी हुई थी, लेकिन उस समय भी कुछ मजिस्ट्रेट थे, कुछ उच्चाधिकारी थे , जो यह सब देख कर खफा थे | जहां तक मुझे याद आता है, मजिस्ट्रेट ने चोरी के केस वाला मामला तो तुरंत खारिज कर दिया था  |  मुझे इंदिरा गांधी के खिलाफ नारेबाजी करने वाले मामले में फिरोजपुर जेल भेज दिया |

फिरोजपुर जेल के रिकार्ड के अनुसार हरि सिंह गुम्बर , सुभाष मैगो और मैं 11 जुलाई को फिरोजपुर जेल पहुंचे थे | रात का समय हो चुका था, हमें एक ऐसी बैरक में ले जाया गया, जहां पहले से ही हमारे अनेक साथी मौजूद थे | रात के खाने पर बवाल मचा हुआ था, राजनीतिक कैदी एक एक फुट घेरे वाली मोटी रोटियाँ खाने को तैयार नहीं थे | भूख हड़ताल शुरू हो गयी थी, नारे लग रहे थे | उसी रात प्रकाश सिंह बादल को भी फिरोजपुर जेल लाया गया था | जिन्हें भूतपूर्व मुख्यमंत्री होने के कारण "ए" क्लास मिली थी . बादल ने प्रशासन से बातचीत की और सुबह हल निकालने के वायदे के साथ हमने वह रोटियाँ और दाल खाई | दाल तो गुरूद्वारे के लंगर जैसी स्वाद थी , पर रोटियाँ अन्दर से मोटी और कच्ची थीं , हम ने किनारे से तोड़ कर रोटियाँ खाई | हल यह निकला था कि सभी को राजनीतिक दल का पदाधिकारी मानते हुए "बी" क्लास दे दी जाएगी, जिस में कच्चा राशन और खाना बनाने के लिए कैदी दिए जाते हैं | हम ने खाना बनाने की एक कमेटी बनाई थी, जिस के अध्यक्ष चाँद कुमार जायसवाल थे |

जालंधर और लुधियाना से आए जनसंघ के नेताओं से एक बैरक तो भर चुकी थी, जिन में मनमोहन कालिया और कृष्ण लाल मैनी भी थे, जो बादल सरकार में वित्त मंत्री रह चुके थे  |  उसी बैरक के एक तरफ सात फुट गुणा सात फुट के  पांच सेल थे, जिन में लाला जगत नारायण और कृष्ण लाल ढल जैसे पत्रकारों और अकाली नेता गुरचरण सिंह टोहरा को रखा गया था | जिस दूसरी बैरक में हमें रखा गया , उस में कुछ दिन बाद कृष्ण लाल शर्मा भी लाए गए | जिन की दिल्ली में नानाजी देशमुख के साथ गिरफ्तारी हुई थी , लेकिन उन्हें फिरोजपुर जेल में लाया गया, क्योंकि उन का वारंट पंजाब से था | मुझे हैरानी तब हुई थी, जब मेरे फिरोजपुर जेल पहुँचने के सप्ताह भर बाद 16 जुलाई को प्रोफ़ेसर एस.सी.नंदा,प्रोफ़ेसर बृजलाल रिणवा और प्रोफ़ेसर प्रीतम लाल चावला भी जेल पहुँच गए | शायद तीनों को इस लिए पकड़ा गया था, क्योंकि उन्होने "इंदिरा गांधी और लोकतंत्र" विषय पर मेरी और से आयोजित उस सेमीनार में भाषण दिया था, जिस में लाला जगत नारायण मुख्य अतिथि थे | सेमीनार में मंच पर मौजूद सभी लोग फिरोजपुर जेल में पहुँच चुके थे |

हमारी दिनचर्या  कराग्रे वसदि लक्ष्मी, कर मध्ये सरस्वती , कर मूले तू गोबिन्दा, प्रभाते कर दर्शनम से शुरू होती थी | फिर शाखा, ध्वज प्रणाम , चर्चा-परिचर्चा , भोजन-विश्राम , गोष्ठी-कवि सम्मलेन इस तरह दिन बीतते गए | लोग बढ़ते गए , नारों की आवाज़े फिरोजपुर जेल की दीवारें फांद कर शहर की फिजाओं में क्रांति का मन्त्र फूंकती रहीं | बाहर से खबरें आ रहीं थी कि शाम को जब हम अन्दर नारे लगाते थे, तो बाहर लोग खड़े हो कर नारे सुनते थे | संघ और अकाली दल का सत्याग्रह शुरू हो चुका था | शाम मुटनेजा सिर्फ इस लिए सत्याग्रह कर के जेल गए थे, ताकि आपातस्थिति के खिलाफ संघर्ष में वह मुझ से पीछे न रह जाएं | जेल में हमारी संख्या बढ़ रही थी, तो शाम को नारों की आवाजें भी तेज हो गईं थी |

उधर बाहर से यह भी खबर हमारे पास थी, कि जय प्रकाश नारायण को दिल्ली में गिरफ्तार करने के बाद चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में रखा गया था | एम्.जी.देवासहायं उस समय चंडीगढ़ के दी.एम  थे, उन्होंने ज्ञानी जेल सिंह और फारूख अब्दुल्ला के माध्यम से इंदिरा गांधी और जय प्रकाश नारायण में बात करवाने की कोशिश की थी , ताकि देश में आपातकाल हटे और लोकतंत्र बहाल हो | लेकिन वह सफल नहीं हुए | इस बीच नवम्बर 1975 में बड़े रहस्यमई ढंग से जय प्रकाश नारायण की तबियत बिगडनी शुरू हो गयी | एम्.जी.देवासहाय ने बाद में लिखा है कि जय प्रकाश नारायण की दोनों किडनियां खराब करने की साजिश रची गयी थी, ताकि अगर वह मारें न भी, तो भी किसी काम के नहीं रहें | देवासहाय ने दिल्ली दरबार को चेतावनी दी थी कि जेपी की जेल में मौत हुई तो उन के लिए कितानी मुश्किल का सामना करना पड सकता है | इस से डर कर इंदिरा गांधी ने जेपी को बिना शर्त रिहा कर दिया था |

इधर जेलें भर रहीं थी | प्रशासन के हाथ पाँव फूल रहे थे | इस लिए जमानत पर रिहाईयाँ शुरू कर दी गईं | एक तरफ सत्याग्रह चल रहा था, दूसरी तरफ जमानतें | जमानतों पर रिहा होने वाले सत्याग्रह कर के दुबारा भी जेल में पहुँच रहे थे | लेकिन मैंने दूसरा रास्ता चुना था | मैंने कुछ युवकों को इक्कट्ठा किया | देसराज बंसल के बेटे फ़कीर चाँद के साथ मेरी दोस्ती थी | उन के दोनों छोटे भाई राजेन्द्र और सुरेन्द्र भी मेरे दोस्त थे | हमारे साथ भूपेन्द्र स्नेही भी जुड़े और हम सब देसराज बंसल के घर बैठ कर आपात स्थिति के खिलाफ हाथ से लिखा अखबार तैयार करते थे | जिन में आपातकाल के बारे में मिल रही खबरों को लिखा जाता था | फ़कीर चाँद बंसल ने साईकलोस्टाईल का इंतजाम भी किया था | चार चार पेज के अखबार तैयार हो जाते थे, तो मैं और मेरे साथ एक अन्य व्यक्ति उन्हें लिफ़ाफ़े में बंद कर डाक में डालने के लिए कई बार 32 किलोमीटर मलौट नाम के कसबे में भी गए | हम ने ऐसे अनेक लोगों के पते भी साईक्लोस्टाईल कर के रख लिए थे, जो समाज में प्रभाव रखते थे | फिर हम ने उन के यहाँ जा कर यह भी पता लगाने की कोशिश करते थे कि हमारी डाक मिली या नहीं | यह सिसिला आपातस्थिति खत्म होने तक जारी रहा |

 

 

 

आपकी प्रतिक्रिया