गांधी-नेहरू और सोनिया-राहुल की कांग्रेस

Publsihed: 05.Mar.2021, 08:22

अजय सेतिया / आपातकाल ने अपन को किशोरावस्था में ही कांग्रेस विरोधी बना दिया था | अपना हिट एंड रन स्टाईल का विरोध इतना प्रभावी था कि पुलिस अपन को पकड़ने के लिए बेचैन हो गई थी | अपन हत्थे नहीं चढ़े तो पिता जी को गिरफ्तार कर लिया था | फिर अपनी गिरफ्तारी, रिमांड और पुलिस टार्चर की लंबी कहानी है | लेकिन पत्रकारिता में आ कर अपन ने आपातकाल के बाद की इंदिरा,राजीव,नरसिंह राव, सीताराम केसरी , सोनिया गांधी की कांग्रेस को नजदीक से देखा और समझा | बरसों तक कांग्रेस को कवर करते हुए कांग्रेस के इतिहास को भी बारीकी से पढ़ा | गांधी और सुभाष चन्द्र बोस को भी पढ़ा तो खिलाफत आन्दोलन को भी पढ़ा , जिसमें गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने भारत को इस्लाम का गुलाम बनाने तक की हिमाकत की थी | लेकिन आज़ादी के बाद और इंदिरा गांधी तक कांग्रेस के उस रूप के अपन कायल रहे हैं , जिसमें सभी विचारधारा के लोग अपना दबाव ग्रुप बना कर कांग्रेस को किसी एक विचारधारा के खूंटे में बाँधने से रोके रहे | कांग्रेस सभी विचारधाराओं का ऐसा गुलदस्ता था , जिसे मिनी भारत कहा जा सकता था |

अब सोनिया गांधी ने कांग्रेस की क्या हालत बना दी है | नरसिम्हा राव और सीता राम केसरी की रहनुमाई में लगातार दो लोकसभा चुनावों हारने के बाद सितम्बर 1998 में कांग्रेस ने अपने पचमढी सम्मेलन में अकेला चलने का फैसला किया था ताकि पार्टी को अपने पैरों पर खड़ा किया जा सके | लेकिन जयललिता के साथ मिल कर वाजपेयी सरकार गिराने के बावजूद कांग्रेस 1999 में लगातार तीसरा चुनाव हार गई तो 2004 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सोनिया गांधी ने अकेला चलो की रणनीति बदलने के लिए जून 2003 में शिमला बैठक बुलाई और क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन कर के चुनाव लड़ने का फैसला किया | जिस से 2004 में शाईनिंग इंडिया के बावजूद वाजपेयी हार गए और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के सत्ता में आने का रास्ता खुल गया था | यहाँ से नई तरह की तुष्टिकरण की राजनीति शुरू हुई , जिस ने संसाधनों पर मुस्लिमों के पहले हक की राजनीति शुरू करवाई | तब पहली बार महसूस हुआ कि तुष्टिकरण की इस राजनीति का विरोध करने वाला कांग्रेस में कोई हिन्दू नेता नहीं बचा |

सेक्यूलरिज्म के नाम पर मुस्लिम परस्ती करने वाले गांधी और नेहरु के सामने स्वामी श्रद्धानंद से लेकर सम्पूर्णानंद , सरदार पटेल, डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद , रवि शंकर शुक्ला और कन्हैया लाल मुंशी दीवार बन कर खड़े थे | आज़ादी के आन्दोलन में प्रमुख भूमिका निभाने वाले और नेहरु केबिनेट के सदस्य रहे कन्हैया लाल मानिक लाल मुंशी ने बाद में नेहरु की मुस्लिम परस्ती के कारण ही कांग्रेस छोड़ कर जनसंघ का दामन थाम लिया था | इस के बावजूद इंदिरा गांधी के जमाने तक एन.वी.गाडगिल, उनके बेटे वी.एन.गाडगिल, नरसिंह राव, कमला पति त्रिपाठी , नवल किशोर शर्मा , श्यामा चरण शुक्ला हिन्दुओं की आवाज उठा कर मुस्लिम परस्ती को रोकने की कोशिश में कामयाब होते रहे थे | कांग्रेस के मुस्लिम नेताओं ने नरसिंह राव पर तो बाबरी ढांचा तुडवाने तक का आरोप लगाया था | इंदिरा गांधी भले ही वोट बैंक बनाए रखने के लिए मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करती थीं , लेकिन हिन्दू सनातन धर्म में उन की आस्था में कभी कोई कमी नहीं आई , उन्होंने हिन्दू हितों के खिलाफ कोई काम नहीं किया | नरसिम्हा राव, कमलापति त्रिपाठी , गाडगिल , एनकेपी साल्वे , नवल किशोर शर्मा , श्यामा चरण शुक्ला और विद्या चरण शुक्ला उन्हीं की छत्रछाया में आगे बढ़े थे |

लेकिन नेतृत्व सोनिया गांधी के हाथ में आने के बाद तो सब कुछ बदल गया | कांग्रेस खुल्लमखुल्ला मुस्लिम परस्ती करने लगी | सोनिया गांधी के दबाव में मनमोहन सिंह सरकार ने 93वें संविधान संशोधन के जरिए मुसलमानों और ईसाईयों के शिक्षण संस्थानों को छोड़ कर बाकी सभी निजी शिक्षण संस्थानों , जिन के मालिक हिन्दू हैं , में 25 प्रतिशत सीटों पर गरीब छात्रों को दाखिला देना जरूरी कर दिया गया | जबकि अल्पसंख्यक संस्थानों पर इस तरह की बाध्यता तो छोडिए उन्हें अनुसूचित जाति और जनजातियों को आरक्षण देना भी जरूरी नहीं किया गया | क्या यह सेक्यूलरिज्म है ? सोनिया-मनमोहन की सरकार ने शिक्षा का अधिकार क़ानून लागू करते समय भी मुस्लिम-ईसाई संस्थानों को छूट दे दी | क्या यह सेक्यूलरिज्म है ? पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब द कोलिशन इयर्समें खुलासा किया है कि 2004 में शंकराचार्य की गिरफ्तारी के पीछे सोनिया गांधी का हाथ था और इसके मूल में हिंदू विरोध की साजिश थी | समझौता ब्लास्ट केस में असली आरोपियों को छोड़ कर हिन्दुओं को गिरफ्तार किया गया और भगवा आतंकवाद शब्द गढ़ा गया | भगवान श्रीराम के अस्तित्व को ही नहीं मानने का हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया गया |

राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद गुजरात विधानसभा चुनावों को छोड़ दें, जब अशोक गहलोत के कहने पर वह मंदिर मन्दिर घूमें थे , कांग्रेस पूरी तरह मुस्लिम परस्त पार्टी बन चुकी है | लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जम्मू कश्मीर में छपने वाले उर्दू दैनिक अखबार इंकलाबने 12 जुलाई, 2018 को बहुत बड़ा खुलासा किया था , जिस में कहा गया था कि 11 जुलाई को राहुल गांधी ने 12 तुगलक लेन स्थित अपने घर में मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ सीक्रेट मीटिंगमें कहा कि कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है | राहुल ने कहा कि उनकी और उनकी मां की मुसलमानों से कमिटमेंट है | इस दौरान मुस्लिम नेताओं ने जब उनके गुजरात में सिर्फ मंदिर जाने पर सवाल उठाया राहुल गांधी ने माफी मांगते हुए कहा कि वह कर्नाटक में कई मस्जिदों में भी गए थे और अब मस्जिदों में जाया करेंगे | इतना ही नहीं अखबार के मुताबिक़ उन्होंने कहा कि 2019 के चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आई तो देश के हर जिले में शरिया अदालत बनाई जाएगी | “इन्कलाब” अखबार का मालिक राहुल गांधी के घर पर हुई बैठक में खुद मौजूद था, लेकिन कांग्रेस ने इन्कलाब में छपी खबर का खंडन किया |

अब पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के मुस्लिम कट्टरवादी पीरजादा अब्बास सिद्दीकी और असम में बदरूद्दीन अजमल के साथ गठबंधन से बिल्ली थैले से बाहर आ गई है , इन्कलाब में छपी वह खबर सही साबित हो रही है कि कांग्रेस मुसलमानों की अपनी पार्टी है | अब्बास सिद्दीकी वह आदमी है जिस ने 50 लाख हिन्दुओं का कत्ल कर के बंगाल को मुस्लिम राज्य बनाने की खुली घोषणा की हुई है | जिस ने फ्रांस में इस्लामिक कट्टरपंथियों की ओर से एक शिक्षक का सिर काटने और मोहम्मद का कार्टून छापने वाली मेग्जिन के 12 पत्रकारों को गोली से भूनने का समर्थन किया था | वैसे अब्बास ने अपनी पार्टी का नाम इंडियन सेक्यूलर पार्टी रखा है , लेकिन अपन जानते हैं कि भारत में सेक्यूलर का मतलब ही हिन्दू विरोध होता है | इसी तरह बदरुद्दीन अजमल भी असम में हिन्दू विरोध की राजनीति करते हैं | मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का सेक्यूलरिज्म विरोधी चेहरा भी सामने आ गया , क्योंकि घोर साम्प्रदायिक मुस्लिम पार्टियों के साथ इस गठबंधन की सूत्रधार वही है |

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनन्द शर्मा ने बंगाल में अब्बास सिद्दीकी के साथ गठबंधन पर सवाल उठा कर उस जमाने की याद दिला दी है , जब कांग्रेस में सभी विचारधारों के लोग दबाव ग्रुप का काम करते थे और किसी एक विचारधारा को हावी नहीं होने देते थे | नरसिंह राव के जाने के बाद से कांग्रेस में हिन्दूओं की आवाज उठाने वालों की कमी महसूस की जा रही थी | प्रणब मुखर्जी जैसे कद्दावर नेता चाह कर भी आवाज़ नहीं उठा पा रहे थे , लेकिन राष्ट्रपति के तौर पर सरसंघ चालक मोहन भागवत को राष्ट्रपति भवन में बुला कर और अपने रिटायर होने पर संघ के राष्ट्रीय वार्षिक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हो कर उन्होंने सोनिया गांधी के खिलाफ अपने जीवन की पूरी भडास निकाल दी थी | आनन्द शर्मा के आवाज उठाने का अपना कारण हो सकता है , हो सकता है कि उन का गुस्सा राज्यसभा में नेता नहीं बनाए जाने के कारण तात्कालिक हो , लेकिन 1998 में सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद से कसमसा रहे कांग्रेस के सनातनी हिन्दुओं को आनन्द शर्मा में आशा की किरन दिखाई दी है , लेकिन सवाल यह है कि कांग्रेस को बचाने के लिए कांग्रेस के हिन्दू आनन्द शर्मा के पीछे खड़े होने का साहस करेंगे क्या , फिर यह भी सवाल होगा कि वह खुद कितनी दूर तक चलेंगे क्योंकि गुलामनबी आज़ाद की तरह उन का भी राज्यसभा में आख़िरी साल होगा |

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