सांसदों विधायकों की पेंशन एक पेचीदा सवाल

Publsihed: 19.Mar.2018, 21:25

अजय सेतिया/ दिल्ली के वरिष्ठतम पत्रकार श्री मनमोहन शर्मा जी ने अपनी फेसबुक वाल पर आज आचार्य कृपलानी और सुचेता कृपलानी से जुड़ी एक याद साझा की है । उसे पढ़ कर सांसदों के वेतन भत्तों पर कुछ लिखना जरूरी हो गया है। पहले आप मनमोहन शर्मा जी का लिखा पढ़ें, फिर ताज़ा स्थिति पर मेरी टिप्पणी। मनमोहन शर्मा लिखते हैं :-"" आचार्य कृपलानी की बेबाक टिप्पणी से एक बार मेरा भी वास्ता पड़ा था। बात कई दशक पुरानी है। आचार्य कृपलानी अपनी पत्नी सुचेता कृपलानी सहित उन दिनों तंगदस्ती का शिकार थे। यह दम्पति बेहद ईमानदार थे। उनदिनों वे दिल्ली के ग्रीन पार्क बस्ती के एक गराज पर बने एक कमरे में रहा करते थे। क्योंकि इस दंपति ने अपने जीवन में कोई मकान या आवास बनाने की ओर कभी ध्यान की नहीं दिया इसलिए वे जिन्दगी के आखिरी दिन किराए के मकान में काटने पर मजबूर थे। मेरे एक पत्रकार मित्र मुझे उनसे मिलने के लिए ले गए। सुचेता कृपलानी ने हमदोनों से चाय के लिए पूछा तो दादा फौरन फट पड़े। उन्होंने कहा “अरे भाग्यवान इनको चाय कहां से पिलाएगी? घर में तो एक पैसा नहीं जो बाजार से दूध लाया जाए। हां, काली चाय इनको पिला दे।“

मेरे मित्र ने जब ध्यान से देखा तो सुचेता जी का एक हाथ जला हुआ था। उसने पूछा दीदी ये क्या हुआ? तो आचार्य कृपलानी फौरन बोल पड़े, “गांधीवाद का सजा भुगत रही है। नौकरानी को देने के लिए पैसे नहीं है इसलिए वह नौकरी छोड़ कर चली गई है। ये सारी उम्र राजनीति और गांधीभक्ति में उलझी रही। घर का कामकाज इसको आता नहीं। नौकर रखने के लिए पैसे नहीं। कल जब चाय बनाने का प्रयास कर रही थी तो पानी उबलकर इसके हाथ पर गिर पड़ा और यह जल गई।“ सुचेताजी ने स्थिति को सम्भालने का प्रयास करते हुए कहा कि “मैं मार्केट से दूध ले आती हूं। दादा फिर बोल पड़े अरे तुम्हे उधार कौन देगा?“ सूचेताजी ने पानी का ग्लास लाकर हमारे सामने रखा और हम बातचीत में खो गए। स्थिति को सम्भालते हुए मेरे मित्र ने कहा कि चाय पीने की हमारी कोई इच्छा नहीं है। आप कष्ट न करें। यह था कांग्रेस के एक महान नेता का बेबाक रूप। तब सांसदों को पेंसन देने की कोई व्यवस्था नहीं थी। उल्लेखनीय है कि सूचेताजी केन्द्र में रक्षा मंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद को सुशोभित कर चुकी थी। ""

मनमोहन शर्मा जी की यह टिप्पणी आज इस लिए महत्वपूर्ण है कि प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी ने सांसदों का वेतन तो 50 हजार से बढ़ा कर एक लाख रुपए कर दिया है, लेकिन पूर्व सांसदों की पेंशन पहले तो बढ़ाने से ही इनकार कर दिया, लेकिन थोड़ा दबाव पड़ा तो 20 हजार रुपए से बढ़ा कर सिर्फ 25 हजार रुपए करने की सिफारिश की है। स्पीकर सुमित्रा महाजन ने कम से कम 35 हजार रूपए करने की सिफारिश की है, मेरा मानना है कि पहले की तरह वेतन का 40 प्रतिशत यानी 40 हजार रुपए होनी चाहिए । नरेंद्र मोदी ने एक बार कहीं कहा है कि पूर्व सांसद सरकार पर बौझ हैं। तो उन्हें जरा सांसदों विधायकों की पेंशन की हिस्ट्री भी जान लेनी चाहिए।

हुआ यह था कि पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरो एक बार एक छोटे कस्बे की सड़क से गुजर रहे थे, उन्होंने अपनी कार के दरवाजे से सड़क के किनारे बैठे एक व्यक्ति को देखा । कार आगे निकल गई, प्रताप सिंह कैरो के झन में वह चेहरा अटक गया , उन्होंने कारों का काफिला रुकवाया और अपनी कार के चालक को थोड़ा पीछे जाने को कहा , वह उस आदमी के पास जा कर रुके और कार से निकल कर उस आदमी को नाम से पुकारा, मुख्यमंत्री का अंदाज सही था, वह एक पूर्व विधायक था , जो जूतियां गांठ रहा था। उस के पास अपना जीवन बसर करने को कुछ नहीं था। तब प्रताप सिंह कैरों ने देश में पहली बार पूर्व विधायकों को 50 रुपए पेंशन तय की थी। इसी तरह बाद में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पिता चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा, जो कि स्वतंत्रता सेनानी और संविधान सभा के सदस्य थे, ने एक बार एक पूर्व सांसद को बुरी हालत में मजदूरी करते देखा , तो उन्होंने इंदिरा गांधी से कह कर पूर्व सांसदों की 500 रुपए की पेंशन तय करवाई थी। आज भी अनेक ईमानदार पूर्व सांसद पेंशन पर निर्भर है।

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