जब 'ॐ' गूंजा आस्कर के मंच पर

Publsihed: 24.Feb.2009, 07:08

अपन को याद है पंद्रह अगस्त 1998 की वह रात। जब राष्ट्रपति भवन के सामने विजय चौक पर लेजर शो हुआ। पीएम अटल बिहारी वाजपेयी खुद मौजूद थे। एआर रहमान ने गाया था- 'वंदे मातरम्'। तेईस फरवरी को रहमान 'स्वर्णिम' आस्कर हासिल कर रहे थे। तो अपन को आजादी की स्वर्ण जयंती का वह सीन याद आ गया। 'स्लमडॉग मिलियनेयर' अपन ने 22 फरवरी रात को ही देखी। झुग्गी-झोपड़ी जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है फिल्म की कहानी। यह कहानी 'क्यू एंड ए' नावेल से ली गई। नावेल के लेखक हैं- अपने आईएफएस अफसर विकास स्वरूप। और खुदा जब देता है, तो छप्पर फाड़कर देता है। दशकों बाद आस्कर मिले। तो एक साथ एक ही फिल्म में आठ। फिर डाक्यूमेंट्री 'स्माइल पिंकी' को भी 'आस्कर' मिला। पर बात रहमान की। एआर रहमान-यानी अल्ला रक्खा रहमान। रहमान जब पैदा हुए तो नाम था- 'दिलीप कुमार'। बात 1988 की, वह बाईस साल के थे।

दिलीप कुमार की बहिन बहुत बीमार पड़ गई। बचने की उम्मीद नहीं बची। पीर शेख अब्दुल कादिर जिलानी की दुआओं ने असर किया। दिलीप की बहिन ठीक हो गई। तो परिवार पर जिलानी का बेहद असर पड़ा। तब पूरे परिवार ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया। इस तरह दिलीप कुमार बन गए अल्ला रक्खा रहमान। रहमान ने 'वंदे मातरम्' ठीक उस समय गाया। जब संसद में 'वंदे मातरम्' पर ओच्छी राजनीति हो रही थी। 'वंदे मातरम्' गाकर रहमान ने बता दिया- धर्म से ऊपर है देश। पर अपने सांसद बाद में भी 'वंदे मातरम्' पर ओच्छी राजनीति करते रहे। रहमान की अलबम ने रिकार्ड तोड़ा। सवा करोड़ कापियां बिकी थी 'वंदे मातरम्' की। वाजपेयी ने 'भारत बाला' के माध्यम से पांच साल दूरदर्शन-आकाशवाणी पर रहमान की धुनें बजवाई। जिसमें रहमान ने मुस्लिम भक्ति संगीत भी गाए। 'वंदे मातरम्' के बाद 26 जनवरी 2000 को रहमान की नई सीडी थी- 'जन-गण-मन'। उनने 'सत्यमेव जयते्', 'एकम् सत्यम्' गीतों की धुनें भी बजाई। वाजपेयी ने एआर रहमान को पदम्श्री से सम्मानित किया। सो ऐसा नहीं, जो दुनिया ने पहचाना हो, अपन ने न पहचाना हो। एआर रहमान को अब भी जिस गीत के संगीत पर 'आस्कर' मिला। वह है- 'जय हो।' देशभक्ति तो कूट-कूटकर भरी है रहमान में। पर करुणानिधि और चिदंबरम की सोच देखिए। करुणानिधि ने कहा- 'रहमान चेन्नई की शान।' चिदंबरम तो पूरी तरह प्रांतवादी हो गए। जब उनने कहा- 'रहमान के आस्कर अवार्ड को करमुक्त किया जाए।' राजनीतिबाज छोटी बातों से बाज नहीं आते। पर रहमान ने 'आस्कर' के मंच पर तमिल बोलकर भारतीय भाषा को शिखर पर पहुंचा दिया। और 'जय हो' लिखने वाले गुलजार के भी क्या कहने। अपने यशवंत व्यास ने गुलजार की बच्चों के लिए लिखी 'पंचतंत्र' की कहानियों का संपादन किया था। गुलजार उन दिनों दिल्ली आकर मौर्य शेरेटन में ठहरते थे। अपन यशवंत व्यास के साथ गुलजार से मिले। तो वह दिन कभी नहीं भूलता। उनने अपने हाथ से दूध कितना, चीनी कितनी, पूछकर चाय बनाकर पिलाई थी। चाय का वह स्वाद अब भी ताजा। फिर तो कई बार इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में मेल-मुलाकातें होती रहीं। मांड लगा झक सफेद कुर्ता, सफेद पेंट। सफेद रंग की पटियाला जूती। गुलजार की यह सदाबहार पोशाक। उर्दू मिक्स हिंदुस्तानी बोली। दोनों गुलजार की पहचान। गुलजार हिंदी के पहले गीत लेखक बन गए। जो रहमान के साथ 'आस्कर' में साझेदार हुए। और रेसूल पूकुट्टी का तो क्या कहने। तमिल रहमान, पंजाबी गुलजार, तो मलयाली रेसूल पूकुट्टी के भी क्या कहने। जैसे आस्कर के मंच पर सचमुच 'जन-गण-मन' बज गया हो। साऊंड मिक्सचर में 'आस्कर' हासिल किया रेसूल पूकुट्टी ने। केरल के लोअर-मिडिल क्लास परिवार में पैदा हुए थे रेसूल। बचपन में छह किमी पैदल चलकर पढ़ने जाते थे। और उनने जो 'आस्कर' के मंच पर कहा। जरा उसे सुनिए। उनने कहा- 'मैं ऐसे देश और सभ्यता से ताल्लुक रखता हूं। जिसने दुनिया को एक ऐसा शब्द दिया। जो अपार शांति देता है। यह शब्द है- ॐ'। यह पुरस्कार मैं अपने देश के नाम करता हूं। और भारतीयता का झंडा रहमान ने भी बुलंद किया। जब उनने कहा- 'मेरे पास 'मां' है।' किसी ने 'आस्कर' हासिल करते 'मां' को भी कभी याद नहीं किया होगा।

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