प्रवीण बागी / किसी मुस्लिम के जय श्रीराम बोलने से इस्लाम खतरे में पड़ जाता है, यह मैं पहले नहीं जनता था। मुसलमान जय श्रीराम बोलें और हिन्दू मज़ारों पर सजदा करें, मुस्लिम दुर्गा की मूर्ति उठाये और हिन्दू ताज़िया खेलें यही तो इस देश की परंपरा रही है।विशेषता है। पटना में न जाने कब से मुस्लिम महिलाओं द्वारा बनाये माटी के चूल्हे पर हिन्दू छठ का खरना प्रसाद बनाते आ रहे हैं। रमजान में हिन्दू अपने मुस्लिम सहयोगियों के लिए इफ्तार का इंतजाम करने में गर्व अनुभव करते है। यही तो हिंदुस्तान की खासियत है। इसीलिए यह पूरे विश्व में अनूठा देश माना जाता है। झगडे, दंगा-फसाद भी होते हैं, धर्म के नाम पर खून की होली भी होती है। लेकिन यह हमारा मूल चरित्र नहीं है। यह क्षणिक आवेश रहता है। जो तुरंत समाप्त हो जाता है। अपनी इसी विशिष्टता के लिए पूरी दुनिया में भारत जाना जाता है। यह अकेला ऐसा देश है जहाँ दुनिया के हर धर्म को माननेवाले लोग सदियों से रहते आ रहे हैं। यहाँ तक की मुस्लिम धर्म के सभी 73 फिरके सिर्फ भारत में ही हैं। इस्लामिक देशों में भी सभी 73 फिरके नहीं हैं।
इस विशिष्टता को खंडित करने की साजिश सदियों से चली आ रही है। लेकिन हम हिंदुस्तानी उन साजिश करनेवालों का मुँह काला करते रहे हैं। हालाँकि साजिश करनेवाले लगातार अलग अलग रूपों में सक्रिय रहते हैं। ताजा मिशाल बिहार के अल्पसंख्यक कल्याणमंत्री खुर्शीद फिरोज अहमद का है। विधानसभा परिसर में एक चैनल पर बोलते हुए उन्होंने किसी मंदिर का जिक्र किया और कहा की बिहार और देश की बेहतरी और लोगों की खुशहाली के लिए मुझे जय श्रीराम भी बोलना पड़ेगा तो बोलूंगा। उन्होंने हाथ में बंधा धागा भी दिखाया और कहा कि रात में वहां गया। प्रदेश की बेहतरी के लिए दुआ मांगी और सुबह महागठबंधन समाप्त हो गया।
इसे इस्लाम विरोधी मानकर इमारत ए सरिया के मुफ़्ती सुहैल अहमद कासमी ने मंत्री खुर्शीद को इस्लाम से निष्कासित करने का फतवा जारी कर दिया। मंत्री का बयान कहाँ इस्लाम विरोधी हो गया ? क्या इस्लाम कोई छुई मुई धर्म है जो किसी के विचार से खतरे में आ जाता है ? आखिर किसी के कुछ खा लेने से, कुछ पहन लेने से, कोई पढाई करने से, किसी की जय बोलने से, कोई गीत गाने या योग करने से इस्लाम कैसे खतरे में आ जाता है? यह मुझे आज तक समझ में नहीं आया। अगर इन सब चीजों से धर्म खतरे में हो जाता है, तो इस हिसाब से हिन्दू धर्म को अबतक ख़त्म हो जाना चाहिए था ? हिन्दू अपने धर्म की जितनी आलोचना करते हैं, उतनी कोई धर्मावलंबी नहीं करता। आप मंदिर जाइये, न जाइये, प्रभु को मानिये, न मानिये, रामायण, गीता, पुराण का पाठ करें या फाड़ कर फेंक दें, सावन में भोले बाबा पर जल चढ़ाये या न चढ़ायें, मांस खाएं या शाकाहारी रहें, धोती पहने या बरमूडा पहनें, दुपट्टा ओढ़े या स्कर्ट में घूमें ,इससे हिन्दू धर्म पर कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर इससे धर्म ख़तरे में पड़ता तो अबतक हिन्दू धर्म का अस्तित्व नहीं बचना चाहिए था। लेकिन हिन्दू इस धरती पर मौजूद है।और पूरी मजबूती से मौजूद है।यह उदारता उसकी कमजोरी नहीं बल्कि ताकत है। मैं यह समझता हूँ कोई भी धर्म उपरोक्त बातों से कमजोर नहीं होता, बल्कि उसका और विस्तार होता है। उसमे व्यापकता आती है। इस्लाम में भी इतनी ताकत है कि वह मुल्ले-मौलवियों और मुफ्तियों के फतवे के बिना भी कायम रह सके। अपनी रक्षा कर सके। सर्व शक्तिमान अल्लाह का पैगाम न तो किसी मुफ़्ती के फतवे का मोहताज है , न इतना कमजोर है कि खुर्शीद जी के जय श्रीराम कहने से उसका अस्तित्व ख़तरे में आ जाये।
इस्लाम को असल ख़तरा बात बात में फतवे जारी करने वालों से है। इस्लाम प्रेम और भाईचारे का सन्देश देनेवाला इंसानियत की राह बतानेवाला धर्म है। यह गरीबों-मजलूमों की मदद का सन्देश देता है। ईश्वर- अल्लाह के नाम पर भेदभाव पैदा करने की बात नहीं करता। कोई भी धर्म इंसान-इंसान के बीच भेद नहीं करता। जो धर्म ऐसी शिक्षा देता है, वह धर्म नहीं अधर्म है। मानवता का शत्रु है। और उसका नाश होना चाहिए। बिहार सरकार के मंत्री खुर्शीद ने एक सच्चे मुसलमान का धर्म निभाया है। उन्हें नही बल्कि मुफ़्ती साहब को इस्लाम से निकालने की जरुरत है।
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