सात साल बाद फिर निकला मुहुर्त

Publsihed: 07.Jan.2017, 21:45

अपन की वापसी हो रही है. फिलहाल अखबार में नहीं. अलबत्ता यही पर. अपने मशहूर "इंडिया गेट से" कालम की वापसी. जो अपन ने 1997 में शुरु किया था. दस साल तक अपन राजस्थान के नवज्योति में यह कालम लिखते रहे. नवज्योति ने भी गजब का प्रयोग किया. न उस से पहले किसी ने ऐसा किया था. न बाद में कभी किसी ने हिम्मत दिखाई.दस साल तक पहले पेज पर पहला कालम. दीन बंधु चौधरी को दिल से आभार. उन ने मौका दिया . तो अपन ने भी मन से लिखा. जम के लिखा. राजस्थान में कोई ऐसा अफसर नेहीन था. जो रोज अपना कालम नहीं पढता था. राजस्थान में कोई ऐसा नेता नहीं था. जो रोज सुबह अपन को नहीं पढता था. अपना कालम पढ कई बार सुबह अपन को भैरो बाबा के फोन ने उठाया. कभी अशोक गहलोत ने. तो कभी वसुंधरा राजे ने. राजस्थान के पाठको से भी अपन सीधे जुडे. बाजार में जो पत्रिका या भास्कर खरीदते थे. वे भी पडौसियो से मांग़ कर नवज्योति में यह कालम पढते. राजस्थान पत्रिका अपन को नवज्योति से उखाड ले गया था. तो अपन ने सोचा था.बडा कनवास मिलेगा. पर हरेक का दिल दीन बंधु चौधरी जैसा नहीं होता. अब जब मन की बात का जमाना है. तो अपन भी मन की बात खोलने में क्यो पीछे रहे. किया. दस साल अपन ने मन की बात मन में छुपाए रखी. अब यह मंच अपना है. तो अपन को फिक्र नहीं. अपन ने पत्रिका में जाने की इच्छा नहीं जताई थी. अपन को अप्रोच किया गया था. अब इस की पुष्टि तो नहीं हो सकती. पर अपन सच लिखने से इस लिए क्यो झिझके कि पुष्टि कैसे होगी. भैरोंसिंह शेखावत अब इस दुनिया में नहीं हैं.अपन ने किसी से सलाह की थी. तो सिर्फ उन से . उन ने अपन से कहा था. यह गलती न करना. पर अपन ने वह गलती कर दी थी. अपन ने 2007 में राजस्थान पत्रिका ज्वायन कर ली. अजमेर में अपना कालम पहले पेज पर छपा. पर पहले दिन उन ने कालम का नाम बदल दिया. पत्रिका के जयपुर में एक दिन बाहर छपा. दूसरे दिन से कुछ दिन अंदर. फिर हफ्ते-दस दिन बाद बंद. पत्रिका के बाकी एडिशनो में कालम का नाम कुछ और कर दिया. ऐसी चंडूखाने की पत्रकारिता का अनुभव हुआ कि क्या बताए. अपन प्रभाष जोशी के दिवाने थे. पर नवज्योति के दिनो में अपन ने प्रभाष जोशी से तारीफ सुनी. तो अपनी पत्रकारिता धन्य हो गई. प्रभाष जोशी ने भी अपन से कहा था. नवज्योति से पत्रिका जाना बलंडर था. अपने पाठको का प्यार बना रहा. जो उन के गुस्से में दिखता था. राजस्थान के अनेक पाठक ,जिन में नेता भी थे. अपन से मिलते तो अपन को ही गलत ठहराते. गलत जगह पर जा कर कालम खत्म करने पर गुस्साते. यह पाठको का प्यार था. अपन ने जनता से जुडाव तब भी देखा. जब अपन पत्रिका से विदा ले रहे थे. तभी जगदीश चंद्रा ने संदेश भिजवाया. ईटीवी में ज्वाईन करने का आफर भेज कर. ईटीवी अपने लिए नई बला थी. अपन न्यूज चैनल पर यदा-कदा बहस में ही जाते थे. बहस में जाना. और न्यूज हैड की जिम्मेदारी बिलकुल अलग हैं. पर अपन ने महीने बाद ही वीकली इंटरव्यू की शुरुआत कर ली. तो अपन ने अपना वही नाम रखा-"इंडिया गेट से" जो खासा पापुलर रहा. अपने पुराने इंटरव्यू देखने हो तो इसी वेबसाईट पर मौजूद हैं. वीडियो चैनल पर मिलेंगे. राजनाथ सिंह के साथ,अरुण जेतली के साथ, सुषमा स्वराज के साथ,नितिन गडकरी के साथ, लालू यादव के साथ,महबूबा मुफ्ती के साथ,बाबा रामदेव के साथ,शरद यादव के साथ,रामविलास पासवान के साथ, निलोपत बसु के साथ,पवन बंसल,श्रीप्रकाश जायसवाल,सत्यव्रत चतुर्वेदी के साथ. अपने पुराने कालम भी "इंडिया गेट से" वाले हैड में पढ सकते हो. करीब-करीब सारे आज भी मौजू. पर अब आप को अपनी ताज़ा टिप्पणिया भी मिलेंगी. बस आप का खोया हुआ प्यार लौट आए. अपना रिश्ता 20 साल पुराना है. कुछ नए भी जुडेंगे इस सफर में. अपन हर रोज मिला करेंगे यहाँ. रब्ब खैर करे. .....आप सब का अपना ,अजय सेतिया. 

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