मिजाईल क्लब ही बनेगा एनएसजी का प्रवेश द्वार

Publsihed: 27.Jun.2016, 15:01

लाख टके का सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल मे भारत एनएसजी का सदस्य बन पायेगा । पिछले सप्ताह चीन ने मोदी के सपनों को इतना जोरदार झटका दिया कि अब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पर उस का नजला उतरने की अटकलें लगाई जा रही हैं। अमेरिका और फ्रांस का समर्थन पाने के बाद मोदी सरकार इतनी उत्साहित थी कि चीन पर दबाव बना कर एनएसजी कि सदस्यता हासिल करने की उम्मीद पाल बैठी थी । अगर चीन को दबाव में लाना इतना ही आसान होता तो तो मनमोहन सिंह यह काम 2008 में ही कर लेते । एनएसजी के सियोल सम्मेलन में सदस्यता का दाव लगाना जरा ज्यादा ही जल्दबाज़ी था। यह स्पष्ट था कि जब तक चीन तैयार नहीं होता, तब तक भारत का एनएसजी का सदस्य बनना संभव नहीं होगा और उसे तैयार किए बिना दांव नहीं लगाना चाहिए था।
चीन की पहली आपत्ति यह थी कि भारत ने क्योंकि एनपीटी पर दस्तखत नहीं किए इस लिए उसे एनएसजी का सदस्य नहीं बनाया जा सकता । उस का दूसरा तर्क यह था कि अगर भारत को सदस्य बनाया जाता है तो पाकिस्तान को भी सदस्य बनाया जाए। हालांकि  2008 में अमेरिका ने भारत के साथ परमाणु ईंधन सप्लाई का समझोता  कर के एनएसजी का सदस्य न होने के बावजूद भारत को परमाणु ईंधन प्राप्त करने की छूट दिला दी थी। चीन का तब भी यह तर्क था कि अगर भारत को यह छूट दी जाती है तो पाकिस्तान को भी दी जाये। हालांकि चीन तब कामयाब नहीं हुया था, लेकिन अब उस के अमेरिका से संबंध उतने अच्छे नहीं हैं अलबत्ता तनाव है , इसलिए उसने अमेरिका,फ्रांस और भारत की कोशिशों को नाकाम बना दिया। भारत को एनएसजी का सदस्य बनने से सिर्फ इतना लाभ होगा कि भविष्य के लिए बनने वाली एनएसजी की नीतियों में उस की भूमिका होगी और पाकिस्तान का प्रवेश रोकने में वह वही भूमिका निभा सकता है जो भारत को रोकने में अभी चीन निभा रहा है। 
एनएसजी पर बैठक से ठीक पहले सात जून को अमेरिकी कोशिशों से भारत को मिजाईल टेकनालोजी कंट्रोल रिजिम (एमटीसीआर ) का सदस्य बनाने का फैसला कर लिया गया । पहले इटली भारत को एमटीसीआर का सदस्य बनाने का विरोध कर रहा था, क्योंकि  2012 में दो भारतीय मच्छुआरों की हत्या के मामले में भारत ने इटली के दो नौसेनिकों को गिरफ्तार कर लिया था। अब भारत सरकार की ओर से उन्हें रिहा किए जाने के बाद इटली के रूख में बदलाव आया और उसने भारत का विरोध बंद कर दिया। ।  भारत को इस ग्रुप का सदस्य बनाया जाना चीन पर दबाव बनाने का एक तरीका था, क्योंकि जिस प्रकार बिना चीन का समर्थन हासिल किए भारत 48 सदस्यीय एनएसजी का सदस्य नहीं बन सकता , उसी तरह अब चीन भी भारत का समर्थन हासिल किए बिना 35 सदस्यीय एमटीसीआर का सदस्य नहीं बन सकता। एमटीसीआर सदस्य देश न्यूक्लियर , बायोटेक्नलोजी, रसायनिक हथियारों और इन की तकनीक का व्यापार कर सकते हैं और इन पर नियंत्रण करते हैं । यही ग्रुप एक तरह से एनएसजी, एमटीसीआर , आस्ट्रेलिया ग्रुप और वासेनर अरेंजमेंट को रेगुलेट करता  हैं। इसलिए भारत को इस ग्रुप में शामिल किया जाना एक तरह से चीन को दबाव में लाने की कोशिश था।  
एमटीसीआर का सदस्य बनाने के बाद भारत मिजाईल टेच्नोलोजी का निर्यात कर सकेगा। वियतनाम लंबे समय से भारत की ब्रह्मोस मिजाईल हासिल करना चाहता था, लेकिन भारत मिजाईल और मिजाईल टेकनालोजी का व्यापार नहीं कर सकता था, इस लिए वियतनाम को ब्राह्मोस की बिक्री नहीं कर सका था। निश्चित रूप से चीन यह कभी पसंद नहीं करेगा कि वियतनाम को उच्च तकनीक की मिजाईल मिले। इसलिए आने वाले समय में जब भारत वियतनाम को ब्राह्मोस की  सप्लाई शुरू करेगा तो चीन के साथ ज्यादा टकराव या दबाव के हालात बनेंगे। एक तरह से भारत का एमटीसीआर का सदस्य बनना भारत-चीन रिश्तों मे बदलाव लाएगा। भले अभी चीन ने भारत को एन एस जी का सदस्य नहीं बनाने दिया, लेकिन बदले हालात में यह स्थिति भी बदलेगी और एमटीसीआर क्लब की सदस्यता ही एनएसजी क्लब में भारत के प्रवेश का द्वार बनेगा। भारत अब उच्च स्तरीय मिजाईल टेकनालोजी खरीदने में भी क्षम होगा। रूस के साथ उच्च टेकनालोजी का संयुक्त व्यापार समझौता जल्द ही हो सकता है। 

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