काकोरी के हिरो भी याद किए जाएं आज

Publsihed: 09.Aug.2016, 10:51

काकोरी की क्रांति 9 अगस्त 1925, सिर्फ गांधी नहीं, क्रांतिकारी भी याद किए जाने चाहिए आज. क्रान्तिकारियो को धन के अभाव में क्रान्ति कार्य करने में कठिनाईया आ रही थी।एक दिन महान क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल ट्रेन में सफर कर रहे थे ,उन्होंने देखा की प्रत्येक स्टेशन पर स्टेशन मास्टर स्टेशन की आमदानी गार्ड के डिब्बे में रखे एक सन्दुक में डाल रहा है। उन्होंने विचार किया की राजनैतिक डकैतियां डालने की बजाय सरकारी खजाना लूटा जाय।
द हिंदुस्तान प्रजातन्त्र संघ की कार्यकारिणी की बैठक 7 अगस्त 1925 को हुई. जिसमे क्रांतिवीर बिस्मिल, राजेन्द्रनाथ लाहिडी ,शचीन्द्रनाथ बक्शी, मन्मथनाथ गुप्त, मुकुन्दीलाल गुप्त, बनवारीलाल, चंद्रशेखर आज़ाद, मुरारीलाल, केशव चक्रवर्ती और अशफाक उल्ला खा थे। बैठक में निर्णय हुआ कि सरकारी खजाने को लूट लिया जाय। अशफाक ने खून खराबा न हो जाय इसके लिए इसका विरोध किया, लेकिन बिस्मिल द्वारा बनायी गयी योजना से वह सहमत हो गए । तय हुआ कि 9 अगस्त को सरहानंपुर लखनऊ ट्रेन के लखनऊ पहुचने से पहले खजाना लूट लिया जाय।
योजनानुसार 10 क्रांतिकारी इसमें सहभागी थे, शाहजहाँपुर से 7 क्रांतिकारी तीसरे दर्जे के डिब्बे में सवार हुए और अलग अलग डिब्बे में बैठे, लखनऊ स्टेशन के पहले काकोरी जैसे छोटे स्टेशन से बक्शी,लाहिड़ी और अशफाक दूसरे दर्जे के डिब्बे में बैठे। काकोरी स्टेशन से गाडी छूटते ही ,शचीन्द्र ने शोर मचाते हुए कहा कि जेवर का बक्सा स्टेशन पर छूट गया है। कुंवरजी (अशफाक) जंजीर खींचो। इस पर जंजीर खीच कर गाडी रोकी और सभी क्रांतिकारी डिब्बे से बाहर निकल आये। हवाई फायर करते हुए सभी सवारियो को ट्रेन में ही रहने की चेतावनी दे दी और सरकारी खजाना लूट लिया।
काकोरी की घटना के बाद सभी सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्रों में सनसनी फैल गयी। अंग्रेजो द्वारा खोजबीन कर 26 सितम्बर को आज़ाद और केशव चक्रवर्ती को छोड़कर सभी को पकड़ लिया गया। मुकदमा 16 अप्रैल 1926 को दायर किया गया और सुनवाई 1मई 1926 से प्रारम्भ हुई। इस क्रांतिकारी घटना ( कांड कहना ठीक नहीं होगा, हांलाकि वामपंथी इतिहासकार इस घटना को कांड लिख रहे हैं ) के बाद लोगो में राजनैतिक जागृति प्रारम्भ हुई,और सभी तारीखों पर कोर्ट में हजारो की भीड़ जमा होने लगी।
क्रान्तिकारियो की और से गणेश शंकर विद्यार्थी, शिवप्रसाद शुक्ल, श्रीप्रकाश और आचार्य नरेंद्र देव मुख्य रूप से सहयोग करते रहे।
सरकार की तरफ से जगतनारायण और उनके पुत्र पैरवी की थी। उन्हें 500 रुपये प्रतिदिन और उनके पुत्र को 250 रुपये प्रतिदिन पारिश्रमिक मिलता था। क्रान्तिकारियो के वकील थे, गोविन्द वल्लभ पंत, चंद्रभान गुप्त, मोहनलाल सक्सेना ,अजित प्रसाद जैन, गोपीनाथ श्रीवास्तव, बहादुरजी और बंगाल के प्रसिद्ध बेरिस्टर बी.के.चौधरी थे।
काकोरी की क्रांति स्वतंत्रता समर में एक माइल स्टोन रहा। इस साहस पूर्ण कार्य के लिए अमर क्रांतिवीरो को नमन।

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