कैलाश सत्यार्थी नए शब्‍दों वाले कवि हैं:  लीलाधर जगूड़ी

Publsihed: 25.Dec.2020, 22:16

अनिल पांडेय / बच्‍चों के लिए नोबेल शांति पुरस्‍कार प्राप्ति की छठी वर्षगांठ के अवसर पर कैलाश सत्‍यार्थी के नए कविता संग्रह ‘‘चलो हवाओं का रुख मोड़ें’’ के आवरण पृष्‍ठ का ऑनलाइन लोकार्पण किया गया। वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित कविता संग्रह के आवरण पृष्ठ का लोकार्पण वरिष्‍ठ रचनाकारों और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी और पदमश्री उषा किरण खान एवं वाणी प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अरुण माहेश्‍वरी ने किया। लोकार्पण समारोह में चर्चित गीतकार-कवि कुमार विश्‍वास की भी गरिमामयी उपस्थिति रही। समारोह का आयोजन वाणी डिजिटल ने किया, जबकि संचालन कवि-कलाविद्-आलोचक यतीन्‍द्र मिश्र ने किया।

अपने प्रकाशकीय संबोधन में वाणी प्रकाशन के प्रबंध निदेशक श्री अरुण माहेश्‍वरी ने कहा कि नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित कैलाश सत्‍यार्थी के कविता संग्रह को प्रकाशित करना हमारे लिए गौरव की बात है। हमारे प्रकाशन को गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर, चेस्‍लाव मिवोश, विश्‍लावा शिर्म्‍बोस्‍का जैसे नोबेल साहित्‍य विजेताओं को भी प्रकाशित करने का गौरव हासिल है। सत्‍यार्थी का कविता संग्रह उसी परंपरा की अगली कड़ी है। कार्यक्रम की शुरुआत में अरुण माहेश्वरी ने कैलाश सत्यार्थी की नई कविता संग्रह की शुभकामनाएं देते हुए उसी संग्रह से एक कविता- 'खुद लिखूंगा अपना शास्त्र' से कुछ पंक्तियों का पाठ किया- 

वेद शास्त्रों की भाषा बोलने वाले तुम्हारे मुंह से 
सहानुभूति, प्रेम या करुणा
या इससे मिलते जुलते 
श्लोकों, मंत्रों और ऋचाओं जैसे शब्द 
बहुत दूर आसमान के सितारों से लगते हैं मुझे..

सामाजिक न्‍याय और हाशिए के लोग कैलाश सत्यार्थी की  कविताओं के विषय हैं। ये कविताएं उन सामाजिक-राजनीतिक विषयों को भी छूती हैं जिनसे आम-अवाम का जीवन प्रत्‍यक्ष और परोक्ष तरीके से प्रभावित होता है। बाल मजदूरों से संबंधित उनकी कविताएं ओजस्‍वी होती हैं जो बाल मजदूरों के हताश, निराश और वंचनाओं से भरे जीवन में आशा, सपने और चेतना का संचार करती हैं। उनकी ऐसी कविताएं सत्‍यार्थी आंदोलन के प्रेरणा गीत भी हैं। श्री सत्‍यार्थी की कविताएं प्रेम, प्रकृति और भारत की सामासिक संस्‍कृति को बचाने का आह्वान करती हैं। हिंदी के अनुभव लोक का विस्‍तार करती हैं श्री सत्‍यार्थी की कविताएं।

हिंदी के वरिष्‍ठ कवि लीलाधर जगूड़ी ने सत्‍यार्थी की कविताओं पर टिप्पणी करते हुए कहा कि काव्‍य की सहस्र धाराएं होती हैं जिसको हम हिंदी कविता के इतिहास में देख सकते हैं। कैलाश जी का यश कर्माधारित है। उनकी कविताएं उनके कर्म का परिणाम हैं। कैलाश जी ने उन बच्‍चों को बचाया है जिनको लोग नष्‍ट कर देना चाहते थे। वे काव्‍य में परिश्रम को पहचानने वाले कवि हैं। काव्‍य का वैभव यह है कि वह बेहतर मनुष्‍य का निर्माण करे। हम देखते हैं कि कैलाश जी अपनी कविताओं के जरिए मनुष्‍य की आंतरिक पहचान को उजागर करते हैं। जगूड़ी ने सत्‍यार्थी की कुछ कविता पंक्तियों का पाठ करते हुए कहा कि इन पंक्तियों में भारत की समस्‍त भाषाओं की दिशाएं हैं और विरोधाभासों से कैलाश जी अपनी कविताओं का कैनवास बनाते हैं। सबसे बड़ी बात यह कि नए शब्‍दों के जरिए अपनी कविताओं की रचना करना कैलाश जी की विशेषता है।

इस अवसर पर लीलाधर जगूड़ी ने कैलाश सत्यार्थी की कई कविताओं के कुछ अंश पढ़े- 

मरेगा नहीं अभिमन्यु 
इस बार अभिमन्यु जीतेगा …

देखो मेरी बेटी स्कूल जा रही है 
एक नई सृष्टि की रचना का सामान भरकर चली वो अपने बस्ते में 
तू ही तो है परमात्मा का हस्ताक्षर 

जब मेरी बेटी जन्मी 
तब हुई पहली भोर 
तब महका पहला फूल 
तब चहकी पहली चिरइया 

मैं साफ देख रही हूं 
अब तो गूंगी आवाज़ें बोलने लगी हैं …

डरी हुई क़ौमें आज़ाद नहीं होतीं 
फिर भी आग की तलाश है 
अंगारे अंकुरा रहे हैं

हिंदी एवं मैथिली की वरिष्‍ठ रचनाकार उषा किरण खान ने कहा कि कैलाश जी का कविकर्म उनके अंतर की कोमलता का प्रकाशमान रूप है। कैलाश जी के कवि की यह विशेषता है कि वे जिनके लिए कविताएं लिखते हैं वे उन कविताओं को जानते हैं। जीवन के कवि हैं कैलाश जी। श्रीमती खान ने कहा कि कैलाश जी की ‘‘जब आदमीयत हो गई हो सबसे बड़ा गुनाह’’ करुणा और प्रेम के कारण उनकी प्रिय कविता बन गई है। 

चर्चित गीतकार-कवि कुमार विश्‍वास ने श्री सत्‍यार्थी की कविताओं पर बोलते हुए कहा कि लोकभाषाओं ने कैलाश जी की कविताओं को गढ़ा है। यह अकारण नहीं है कि उनकी कविताओं में बुंदेलखंडी, बघेली, अवधि और ब्रजभाषा के शब्‍द मिलते हैं। उनकी कविताओं की भाषा पर अलग से काम करने की जरूरत है। कैलाश जी की कविताओं में कोंपल के टूटने की पीड़ा सबसे ज्‍यादा विन्‍यस्‍त हुई हैं। बचपन का दुख कोंपल का दुख है और कैलाश जी ने उसको चुना है।

नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्‍यार्थी ने अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में बताते हुए कहा कि कविता के अंदर जो ऊर्जा निहित है उसमें अनंत संभावनाएं हैं। मैं मानता हूं कि मानवीय संवेगों, आवेगों, भावनाओं, आक्रोश में कोई न कोई ऊर्जा रहती है और अलग-अलग तरह से लोग उन ऊर्जाओं का इस्‍तेमाल करते हैं। समाज के हाशिए पर पड़े लोगों पर काम करने के बारे में मैंने शुरू में ही सोच लिया था। मेरी कविताओं को भी उसी के तहत देखा जाना चाहिए। मेरी रचनाधर्मिता के साथ-साथ क्रियाशीलता अहम रही है। मैं मानता हूं कि मेरी कविताएं तब तक अधूरी हैं जब तक कि दुनिया के किसी भी कोने में एक भी बच्‍चा गुलाम, शोषित, और वंचित है और उनको आजादी नहीं मिल जाती है। मैंने बाल मजदूरी के खिलाफ विश्‍व यात्रा के समय जो कसमसाहट महसूस की उस पर कविता लिखी। अपनी बेटी के जन्‍म के अवसर पर जो खुशी महसूस की, उस पर भी कविता लिखी। सत्‍यार्थी ने एक विशेष बात की ओर इशारा किया कि बच्‍चों पर हम जो कुछ भी लिखें वह किसी दया या कृपा के भाव से नहीं लिखें बल्कि करुणा के भाव से लिखें। यदि हम अभी भी पारदर्शी हैं तो समझ लीजिए कि एक बच्‍चा हमारे अंदर जिंदा है। उन्होंने इस अवसर पर करुणा के वैश्वीकरण का आह्वान किया।

सत्‍यार्थी की कविताओं की विशेषताओं और जनपक्षधरता पर वक्‍ताओं ने खुलकर बात की और उन्‍हें जनता का कवि बताया। धन्‍यवाद ज्ञापन अरुण माहेश्‍वरी ने किया।

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