पांच हजार साल पुराने जलिकट्ट में फच्चर फसा गई थी कांग्रेस 

Publsihed: 20.Jan.2017, 22:13

जलिकट्ट के समर्थन में दुनिया भर में सडको पर आ गए. तमिल नौजवान मद्रास के मरीना बीच से दिल्ली के जंतर-मंतर तक पहुंच गए. केंद्र और राज्य सरकार ही नहीं ,सुप्रीमकोर्ट के भी होश उड गए. जो सुप्रीमकोर्ट अडी हुई थी. उसी सुप्रीमकोर्ट ने शुक्रवार को रास्ता निकालने की खिडकी खोल दी. तमिलनाडू के युवाओ ने सब के होश ठिकाने ला दिए. अपन थोडी हिस्ट्री बता दे. यह असल नाम जलिकट्टू नहीं. अलबत्ता पुराना नाम है सलिकट्टू. सल्ली यानि सिक्का. कट्ट यानि ईनाम. जलिकट्ट 5000 साल से तमिल कल्चर का हिस्सा. मदुरै में एक सुरूंग मिली. जिस में जलिकट्टू की 2500 साल पुरानी पेंटिंग मिली. सिंधु घाटी सभ्यता में जलिकट्टू के सिक्के मिले. नेशनल म्यूजियम में भी जलिकुट्ट के हजारो साल पुराने सबूत मौजूद. सांड के सिंग पर एक झंडे में ईनाम का सिक्का बांधा जाता था. सांड को छोड दिया जाता था. एक-एक कर युवक सांड को रोक सिक्का हाँसिल करने की कोशिश करते. कई जगह पर एक साथ 9 युवक मैदान में उतरते. बदलते बदलते सांड भीड में उतारे जाने लगे. जलिकट्ट के कुछ नियम थे. नियम ऐसे कि सांड को कोई नुकसान न पहुंचे. खासकर तमिलनाडू के मदुरै और तिरूचि जिलो का पौंगल खेल. करीब करीब यही खेल स्पेन में भी सदियो से हो रहा. स्पेन का तो राष्ट्रीय खेल है बुल फाईट. जलीकट्ट का ताज़ा विवाद 2004 में तब शुरु हुआ था. जब जलिकट्ट के दौरान एक नौजवान की मौत को गई . मरने वाले का परिवार कोर्ट में गया. मद्रास हाईकोर्ट ने 2007 में जलीकट्टू को बैन कर दिया. 2008 से मामला सुप्रीमकोर्ट में. तब से सुप्रीम कोर्ट कई गाईड लाईन जारी करता रहा. उन गाईड लाईन का पालन होता रहा. तमिलनाडू सरकार ने गाईड लाईन पर ही 2009 में कानून पास किया. तमिलनाडू में जयललिता सीएम थी. मनमोहन सरकार में करुणानिधी की डीएमके पार्टनर थी. जलिकट्ट का कानून जयललिता ने बनाया था. सो यूपीए ने बदमाशी भरी शरारत की. जयराम रमेश पर्यावरण मंत्री थे. उन ने एक नोटिफिकेशन जारी किया. इस नोटिफिकेशन में सांड और बैल को खेलो में बैन लिस्ट में डाल दिया. पर जयललिता ने परवाह नहीं की. वह 2009 के कानून के मुताबिक जलिकट्ट करवाती रही. पर 7 मई 2014 को सुप्रीमकोर्ट ने 2009 का कानून रद्द कर दिया. कानून रद्द होते ही जलिकट्ट पर बैन लग गया. फिर भी 2015 में कई जगह जलिकट्ट हुआ. 2016 में तमिलनाडू में चुनाव थे. मोदी सरकार ने 8 जनवरी 2016 को एक आर्डर जारी किया. आर्डर में जलिकट्ट में सांड को शामिल करने की इजाजत थी. पर सुप्रीमकोर्ट ने पांचवे दिन ही आर्डर पर रोक लगा दी. 24 जुलाई 2016 को फैसला सुना कर मोदी सरकार का आर्डर रद्द कर दिया. मोदी सरकार की कोशिश जारी रही. नवम्बर में मोदी सरकार ने पुनर्विचार याचिका लगाई. पर इसी बीच 2017 का पौंगल आ गया. कोर्ट का फैसला नहीं आया. कोर्ट ने फैसले तक जलिकट्ट की इजाजत भी नहीं दी. तब बवाल खडा हुआ. जो अब अपने चरम पर है. सारे राजनीतिक दल समर्थन पर उतर आए. फिल्मी हस्तिया समर्थन पर उतर आई. इस खेल का दूसरा पहलू भी है. वह पहलू है जानवारो पर अत्याचार का. दुनिया भर में जानवरो की सुरक्षा की मुहिम चलाती है "पेटा". बडी बडी हीरोईनो को आप ने कपडे उतार कर "पेटा" लिखा देखा होगा. वे जानवरो की सुरक्षा का प्रचार कर रही होती हैं. अपने भारत में जितने भी बुद्धिजीवी , सडको पर सब पेटा के समर्थक. पर चारदीवारी में आधे से ज्यादा नान वेजीटेरियन. सब गौ-रक्षक संस्थाओ के विरोधी . पेटावादियो का दोहरा चरित्र भारत में साफ दिखता है. भारत ने 1960 में जानवारो को क्रुरता से बचाने को एक कानून बनाया. पर यह कानून जलिकट्टू में कभी अडचन नहीं बना. तब तक, जब तब यूपीए सरकार ने बदमाशी नहीं की. जयराम रमेश ने "पेटा" को अपनी बदमाशी का मोहरा बनाया था. तभी मैरीना बीच के प्रदर्शनकारियो के हाथ में "पेटा" के खिलाफ बैनर. भारत सरकार का भी है एक एनिमल वेलफेयर बोर्ड आफ़ इंडिया. यह बोर्ड भी कोर्ट में पार्टी था. अब जब दुनिया भर  के तमिल सडको पर उतर चुके . तो जयललिता के वारिस पन्नीरसेलवन दिल्ली दौडे .  साथ में आर्डिनेंस का ड्राफ्ट बनवा कर लाए थे. पर मोदी पहले ही सलाह ले चुके थे. केंद्र का आर्डिनेंस सुप्रीमकोर्ट  में नहीं ठहरता. क्योकि  जानवरो पर क्रूरता वाला 1960 का कानून आडे आएगा. अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने रास्ता निकाला. सांस्कृतिक खेल  बता कर आर्डिनेंस राज्य सरकार ले आए. खेल राज्य सूची का हिस्सा. आर्डिनेंस में कुछ सख्त नियम रखे जाए. जो जानवरो की सुरक्षा की गारंटी दे. केंद्र और राज्य में सहमति बन गई. पन्नीरसेलवन ने हाथो हाथ राष्ट्रपति से भी मुलाकात की.  गृहमंत्री से सांसदो की मुलाकात हुई. आर्डिनेंस के ड्राफ्ट को मंत्रालयो में घुमाया गया. अडचन बनता पर्यावरण मत्रालय.  सो पर्यावरण मंत्री अनिल दवे को सब से पहले मैदान में उतारा गया. उन ने जयराम रमेश का नाम तो नहीं लिया. पर ठीकरा यूपीए सरकार के सिर फोडने में झिझके भी नहीं. कानून मंत्री रविअशंकर प्रशाद ने भी कह दिया-"रास्ता निकाल रहे हैं." अब बारास्ता राष्ट्रपति आर्डिनेंस गवर्नर के पास जाएगा. तो आज-कल में जारी होगा. दुनिया भर तमिलो का बवाल देख सुप्रीमकोर्ट भी ठिठकी. आखिर यह्री सुप्रीमकोर्ट 2007 से  नियम बनवा कर जलीकट्टू करवा रहा था. अटार्नी जनरल ने कहा आप केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर फैसला रोकिए. और सुप्रीमकोर्ट फौरन मान गया. 

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