भारत अमेरिका मे संसाधनों का रणनीतिक समझौता

Publsihed: 29.Aug.2016, 09:28

भारत और अमेरिका में एक दूसरे के संसाधनों का इस्तेमाल करने का एतिहासिक समझोता होने वाला है. (Logistic exchange memorandum of agreement.) भारत के रक्षा मंत्री मनोहर पारिकर दो दिन के अमेरिका दौरे पर हैं. समझौता मंगलवार को होगा. जापान और आस्ट्रेलिया के बाद यह अति महत्वपूर्ण कूटनीतिक समझौता है.

यह पाकिस्तान और चीन की भारत विरोधी सांठगांठ को ध्यान में रख कर किया जा रहा है. भविष्य में संभावित खतरों को ध्यान में रख कर मोदी सरकार आने के बाद भारत की विदेश नीति में यह व्यापक परिवर्तन है. शीत युद्ध के दिनों में भारत सोवियत संघ के साथ था,, जब कि अब चीन-पाकिस्तान मे इक्नामिक कारिडोर के निर्माण और ग्वादर पोर्ट के विस्तार समझौते ने नए खतरे बढा दिए हैं. कोरिडार और ग्वागर पोर्ट के रास्ते चीन सामरिक दृष्टि से भारत के करीब पंहुच गया है. यह चीन की समुद्री क्षेत्र पर विस्तारवादी योजना का हिस्सा है.

पाकिस्तान ने अवैध और ब्लात कब्जा किए गए जम्मू कश्मीर के एक हिस्से को पहले चीन को दे दिया था और अब उसी हिस्से पर कारिडोर बनाते हुए चीन को दूसरे अवैध और ब्लात कब्जे वाले ब्लूचिस्नान तक पंहुचा दिया है. चीन के ग्वादर पोर्ट पर पंहुचने से समूचे दक्षिण-पूर्व समुद्र पर खतरा पैदा हो गया है. चीन और पाकिस्तान की इसी रणनीति को ध्यान में रख कर भारत ने ब्लूचिस्तान की आजादी के आंदोलन का खुला समर्थन शुरू कर दिया है.

पाकिस्तान ने पहले खुद ब्लूचिस्तान की प्राकृतिक संपदा और संसाधनों का इस्तेमाल किया और अब अपने रणनीतिक साझेदार चीन के लिए कारिडोर और पोर्ट के माध्यम से शोषण का रास्ता खोल रहा है. जिस से ब्लूचिस्तान में आक्रोश पहले से कंही ज्यादा भडक गया है. अब स्पष्ट हो रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से जम्मू कश्मीर पर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और ब्लूचिस्तान का मुद्दा अंर्तराष्ट्रीय रणनीतिक तैयारी के बाद ही उठाया गया था. भारत के इस रूख का 68 साल से इंतजार कर रहे दुनिया भर के ब्लूच मोदी के रूख पर झूम उठे तो मोदी ने लाल किले के भाषण मे ब्लूचिस्तान का जिक्र कर के पाकिस्तान को स्पष्ट संकेत दे दिया. मोदी का संकेत मिलने के बाद ब्लूचिस्तान के विस्थापितों ने दुनिया भर में प्रदर्शन शुरू कर दिए है.

भारत और अमेरिका के कल होने वाले समझौते के बाद ब्लूचिस्तान की आजादी के आंदोलन पर भी गहरा असर पडेगा. अमेरिका की ओर से भी ब्लूचिस्तान पर भारत से मिलता जुलता स्पष्ट बयान आ सकता है. इस समझोते के बाद अमेरिका भारतीय समुद्री क्षेत्र में युद्ध पोत तैनात कर सकेगा. अमेरिका को जैसे अफ्गानिस्तान में सारे संसाधन जुटाने पडे थे, इस समझोते के बाद ( जरूरत पडने पर ) नहीं जुटाने पडेंगे. जो अमेरिका के लिए चीन, पाकिस्तान , अफ्गानिस्तान , इराक के लिहाज से अति महत्वपूर्ण होगा. इसी तरह भारत भी अमेरिका के अधिकार वाले क्षेत्र का रणनीतिक इस्तेमाल कर सकेगा. समझोते के अंतर्गत दोनों देश एक दूसरे को ईंधन भरने, स्पेयर पार्ट, रिपेयर आदि की सुविधाएं भी उपलब्ध करवाएंगे.

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