नोटबंदी लागू होने के बाद से दिल्ली में जहां एक तरफ कुछ लोग अफवाहें उड़ाने और दंगे भड़काने की साजिश में लगे थे, वहीं दूसरी तरफ शहर के गुरुद्वारों ने एक अलग ही मिसाल कायम की है। दिल्ली के ज्यादातर गुरुद्वारों में 8 नवंबर के बाद से दोगुने से ज्यादा लोग लंगर में खाने आ रहे हैं और इनकी वजह से खाने पर होने वाली खपत भी दोगुनी के करीब हो गई है। लंगर में आने वाले ज्यादातर गरीब लोग हैं, जिनके पास पैसे नहीं होने की वजह से दूसरा कोई तरीका नहीं था। इनके अलावा दूसरे शहरों से आने वाले जरूरतमंदों के लिए भी गुरुद्वारे सबसे बड़ा आसरा बन गए।
गुरुद्वारा शीशगंज में आटे का खर्च दोगुना
8 नवंबर के बाद से चांदनी चौक के गुरुद्वारा शीशगंज में आटे की खपत दोगुने से ज्यादा हो गई है। पहले रोज 6 से 7 क्विंटल आटा लगता था, लेकिन बीते 15 दिन रोज इसकी खपत 14 क्विंटल के आसपास रही। इसी तरह से दालों और सब्जियों की जरूरत भी पहले से काफी ज्यादा पड़ रही है। गुरुद्वारे के मैनेजमेंट का कहना है कि अब हालात धीरे-धीरे सामान्य हो रहे हैं और इसके साथ ही लंगर में आने वालों की संख्या भी पहले से कम होने लगी है। हालांकि अभी भी गरीब और मजदूर तबके का लंगर में आना जारी है।
24 घंटे जारी रहता है गुरुद्वारे का लंगर
- चांदनी चौक और आसपास के इलाकों में बड़ी तादाद में बेघर और मजदूर रहते हैं। इनके पास दिहाड़ी के सिवा रोजी-रोटी का कोई दूसरा तरीका नहीं होता। नोटबंदी के बाद कारोबार में अचानक गिरावट आ गई थी, जिसकी सीधी मार इस तबके को झेलनी पड़ी। लेकिन ऐसे मुश्किल वक्त में गुरुद्वारा शीशगंज ने रोज सैकड़ों लोगों को भरपेट खाना खिलाया। इसके अलावा पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से भी बड़ी संख्या में यात्री आकर यहां की सराय में ठहरे और लंगर में भरपेट खाना खाया। दिल्ली के सभी गुरुद्वारों का हाल करीब-करीब ऐसा ही बना हुआ है। ये गुरुद्वारे देश के इम्तिहान के इस वक्त में नकारात्मकता से दूर गरीबों का पेट भरने में जुटे हुए हैं
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