संसद की अनदेखी

Publsihed: 02.Dec.2011, 00:06

जनसत्ता, 1 दिसंबर, 2011 : वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने चौबीस नवंबर को उपभोक्ता क्षेत्र में विदेशी निवेश संबंधी मंत्रिमंडल के फैसले का एलान किया। उन्होंने कहा कि जनता ने यूपीए को बहुमत दिया है, इसलिए उन्हें फैसले करने का अधिकार है। अगर संविधान में ऐसा होता तो संसद की जरूरत ही क्या थी। अमेरिका की तरह यहां प्रधानमंत्री का सीधा चुनाव नहीं होता। सरकार अपने फैसलों के लिए संसद के प्रति उत्तरदायी है और उसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का भी प्रावधान है। रहा चुनाव में बहुमत का सवाल, तो वह भी जनता ने न कांग्रेस को दिया न यूपीए को।

जांच की सियासत

Publsihed: 21.Nov.2011, 20:30

जनसत्ता, 22 नवंबर, 2011 : राजनीतिक गलियारों में लोग कहते सुने जाते हैं, राज तो कांग्रेस को ही करना आता है। कौन-सी चाल कब चलनी है, इस मामले में बाकी सब अनाड़ी हैं। मायावती चाहे लाख बार सवाल उठाती रहें कि जयराम रमेश की चिट्ठियां और गुलाम नबी आजाद के आरोपों की बाढ़ चुनावों के वक्त ही क्यों। भारतीय जनता पार्टी भी चाहे जितने आरोप लगाए कि राजग कार्यकाल के स्पेक्ट्रम आबंटन पर एफआईआर सीबीआई का बेजा इस्तेमाल है, पर यह कांग्रेस को ही आता है कि लालकृष्ण आडवाणी की भ्रष्टाचार विरोधी रथयात्रा के समापन आयोजन की हवा कैसे निकालनी है। आडवाणी की भ्रष्टाचार विरोधी रैली और संसद के शीत सत्र से

मीडिया की मर्यादा

Publsihed: 12.Nov.2011, 15:06

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा को लगता है कि न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू की अध्यक्षता वाली प्रेस परिषद भंग कर देनी चाहिए। यह मांग उन्होंने इसलिए की क्योंकि काटजू ने दृश्य मीडिया को प्रेस परिषद के अधीन लाने की मांग की है। न्यायमूर्ति वर्मा अब दृश्य मीडिया की उस नेशनल ब्राडकास्टिंग अथॉर्टी के अध्यक्ष हैं जो प्रेस परिषद से भी ज्यादा दंतविहीन है, जो नहीं चाहती कि मीडिया पर कोई नियंत्रण होना चाहिए, जो प्रेस परिषद के दायरे में भी नहीं आना चाहती...

जिंदा कौमें और पांच साल का इंतजार

Publsihed: 03.Nov.2011, 15:35

लोकपाल अभी बना नहीं। पता नहीं जनलोकपाल प्रारूप के अनुरूप बनेगा भी या नहीं। कहीं अन्ना हजारे को मजबूत लोकपाल के लिए फिर से आंदोलन न करना पड़े। लेकिन उससे पहले ही टीम अन्ना ने संसद को सुधारने का बीड़ा उठा लिया है। राइट-टू-रिकॉल के लिए आंदोलन की डुगडुगी बजनी शुरू हो गई है। राइट टू रिकॉल यानी जनता को अपने चुने हुए सांसदों-विधायकों को वापस बुलाने का अधिकार। बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने भी आव देखा न ताव। जयप्रकाश नारायण का नाम लेकर राइट-टू-रिकॉल का समर्थन कर दिया। शरद यादव और नीतिश कुमार समाजवादी परंपरा की उपज हैं। उनके नेता राममनोहर लोहिया कहा करते थे- 'जिंदा कौमें

उत्तराखंड से हुई आदर्श लोकायुक्त की शुरुआत

Publsihed: 30.Oct.2011, 20:30

कहते हैं, दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूंककर पीता है। कर्नाटक में लोकायुक्त की मार से सहमी भारतीय जनता पार्टी पर यह कहावत कितनी लागू होती है, यह तो अभी नहीं कहा जा सकता। लेकिन जिस तेजी से भाजपा ने उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बदला, उससे कर्नाटक का सबक सीखने की भनक तो लगी ही। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप सुर्खियों में नहीं आए थे। गाहे-बगाहे अदालतों में भ्रष्टाचार के मामले जरूर आए। अदालतों ने तीखी टिप्पणियां भी की, सरकार के कुछ फैसले रद्द भी किए। विपक्ष भ्रष्टाचार के मामले उजागर करता, उससे पहले ही कर्नाटक के लोकायुक्त की रिपोर्ट आ गई। कर्नाटक के मुख्यमंत्री को

नेताओं की करनी और कथनी

Publsihed: 28.Oct.2011, 15:23

यह अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री  मनमोहन सिंह आखिरकार कपिल सिब्बल और पी चिदम्बरम के प्रभाव से बाहर आ गए हैं। अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के मामले में सारी गलतियां उन्हीं की करी धरी थी। हाल ही की अपनी विदेश यात्रा से लौटते हुए मनमोहन सिंह ने यह कहते हुए अन्ना हजारे की तारीफ की कि उनकी आंदोलन के सकारात्मक पहलू सामने आए हैं। शनिवार को सीबीआई और भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियों के द्विवार्षिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए मनमोहन सिंह ने वही बात दोहराई। उन्होंने माना कि लोकपाल के गठन को लेकर हुए आंदोलन ने सार्वजनिक जीवन में स्वच्छता के मुद्दे को हमारी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के एजे

आरटीआई और राजनीतिज्ञों-नौकरशाहों का गठजोड़

Publsihed: 28.Oct.2011, 15:14

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अचानक अपने ही बनाए एक कानून पर चिंतित हो उठे हैं। उनकी पार्टी के मंत्री और कई सांसद तो पहले से ही चिंतित थे। अकसर सत्ताधारी दल के सांसदों को अपनी ही सरकार से तरह-तरह की शिकायतें रहती हैं। उनके काम तीव्र गति से नहीं होते या कई बार होते ही नहीं। उन्हीं की पार्टी के मंत्री उनकी सुनते नहीं या कई बार मिलने तक का समय नहीं देते। पर यह अनोखा उदाहरण सामने आया है जब प्रधानमंत्री को अपने ही बनाए कानून पर फिक्रमंद देखा जा रहा है। यह चिंता है सूचना के अधिकार कानून के तहत जनता को मिल रही सरकार और अफसरों के दुष्कर्मो की सूचनाओं को लेकर। संभवत: यूपीए सरकार ने अपन

हिसार भाजपा के लिए भी सबक

Publsihed: 24.Oct.2011, 11:33

हिसार का चुनाव नतीजा कांग्रेस के लिए ही नही, भाजपा के लिए भी सबक लेने का मौका है. कांग्रेस ने अपनी साख बेह्द खराब कर ली है. जमानत जब्त होना कांग्रेस के लिए चिंता का विषय होना चाहिए. टीम अन्ना कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करने ना जाती तो उसकी जमानत कतई जब्त नही होती. टीम अन्ना भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने में कामयाब रही. इससे यह भी जाहिर हो गया है कि देश की जनता भ्रष्टाचार से कितनी त्रस्त है. जो लोग यह मानते हैं कि भ्रष्टाचार अब चुनावी मुद्दा नही बनता उनके लिए भी यह चुनाव बडा सबक है. देश की जनता को अगर कोई सही वकत पर जगा दे, तो वह जग भी जाती है.

जनाक्रोश और जनतंत्र

Publsihed: 24.Oct.2011, 11:26

अन्ना  टीम के सदस्य और प्रसिध वकील प्रशांत भूषण के चेम्बर में घुस कर तीन युवकों ने उनकी पिटाई कर दी. जिस की जितनी निंदा की जाए कम है. जनतंत्र में ऐसी हिंसा की इजाजत नहीं दी जा सकती. उनका कसूर सिर्फ यह था कि उन्होंने कश्मीर पर एक ऐसा बयान दे दिया था, जो इन युवकों को पसंद नही था. वह बयान ज्यादतर भारतीयों को पसंद नहीं आया होगा. बिना लाग-लपेट बयान को प्रस्तुत करें तो उन्होंने कहा था कि कश्मीरियों को साथ रखने की कोशिश करनी चाहिए, लेकिन अगर वे साथ नहीं रहना चाहें तो उन्हें अलग होने देना चाहिए.